संचार क्रांति योजना यानी पॉकेट में रॉकेट
रायपुर, 10 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में बस्तर के दुर्गम और दूरस्थ अंचल में रहने वाली संगीता निषाद, विमला ठाकुर या बलवंत नागेश ने 26 जुलाई को कैसा महसूस किया होगा? यह सवाल सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि इन्हें राष्ट्रपति के हाथों स्मार्ट फोन मिला, बल्कि इसलिए भी अहम है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो शायद इन्हें स्मार्ट फोन पाने के लिए वर्ष 2035 तक इंतजार करना पड़ता।
इस अंतहीन इंतजार का जवाब ट्राइ के आंकड़े देते हैं। वर्ष 2001 में देश के शहरी क्षेत्रों की टेलीडेंसिटी मात्र 10.4 प्रतिशत थी और ग्रामीण अंचलों की मात्र 1.5 प्रतिशत थी। वर्ष 2015 में शहरों की टेलीडेंसिटी में 151 प्रतिशत का इजाफा हुआ तो ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 51 प्रतिशत।
वर्ष 2015 से 2018 के बीच ग्रामीण अंचलों की टेलीडेंसिटी मात्र 3.5 प्रतिशत बढ़ी और यह बढ़त भी कायम रही तो पूरे भारत में 100 प्रतिशत टेलीडेंसिटी के लिए वर्ष 2035 तक इंतजार करना पड़ेगा। टेलीडेंसिटी यानी निर्धारित इकाई के क्षेत्र में मौजूद फोन की संख्या।
यह सवाल सिर्फ छत्तीसगढ़ का नहीं है, बल्कि झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों या दक्षिण एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों का भी है। मानव सभ्यता को विकास की सीढ़ियां चढ़ाने में जिन आविष्कारों का मुख्य योगदान रहा है, उनमें पहिया, बिजली, सेमीकंडक्टर्स, इंटरनल कम्बशन इंजन आदि ने बड़ी भूमिका निभाई है। इसी क्रम में अब इंटरनेट और मोबाइल फोन विकास की नई क्रांति की नई-नई इबारतें लिख रहे हैं।
यह बात बहुत पुरानी नहीं है, जब टेलीफोन एक दुर्लभ वस्तु मानी जाती थी। भारत में लैंडलाइन फोन की शुरुआत सन् 1852 में हुई थी और 155 वर्षों बाद आज यहां 2 करोड़ 50 हजार कनेक्शन उपलब्ध हैं।
मोबाइल फोन भारत में 1996 में आए थे और मात्र 22 वर्षों बाद देश में 100 करोड़ मोबाइल हैं। तब मोबाइल की कीमत 10-15 हजार रुपये होती थी। मुद्रास्फीति की औसत दर 6.7 प्रतिशत भी मान लें तो 1996 के 15 हजार रुपये आज के 55 हजार रुपये हो जाएंगे। उस समय तो ‘इनकमिंग चार्ज’ भी लिया जाता था। आज 125 करोड़ की आबादी में 100 करोड़ फोन चल रहे हैं, जिसमें से 22 करोड़ लोग स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं। हर माह 90 लाख नए लोग स्मार्टफोन का उपयोग करने वालों की सूची में जुड़ते जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का गठन ही पिछड़ेपन की पृष्ठभूमि में हुआ है। सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना-2011 के आंकड़े कहते हैं कि भारत में औसतन 72 प्रतिशत परिवार मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में सिर्फ 29 प्रतिशत। उसमें भी मात्र 10 प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन है। छत्तीसगढ़ में शहरी टेलीडेंसिटी 125 प्रतिशत है, जबकि गांवों में मात्र 37 प्रतिशत। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि क्या साढ़े 3 प्रतिशत की विकास दर से चलते हुए वर्ष 2035 का इंतजार किया जाए?
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने दूसरा रास्ता चुना, जिससे इंतजार शब्द मौन हो गया। जिन्होंने 2जी भी नहीं देखा था, उनके हाथ में सीधे 4जी नेटवर्क आ गया, यानी बैलगाड़ी से उठाकर रॉकेट में बैठा दिया गया।
छत्तीसगढ़ की संचार क्रांति योजना (स्काय) किसी सरकार द्वारा नि:शुल्क मोबाइल फोन बांटने की पृथ्वी की सबसे बड़ी योजना है। जहां कनेक्टिविटी नहीं थी, वहां कनेक्टिविटी और जहां क्रयक्षमता नहीं थी, वहां नि:शुल्क स्मार्ट फोन दिए जा रहे हैं।
स्मार्टफोन यूजर्स का प्रतिशत 29 से बढ़कर 100 प्रतिशत, ग्रामीण अंचलों का मोबाइल कवरेज 66 से बढ़ाकर 90 प्रतिशत करने, 16 सौ मोबाइल टॉवर की स्थापना सुनिश्चित करने के साथ ही मात्र 60 दिन में 50 लाख स्मार्टफोन का वितरण किया जा रहा है। स्काय का वितरण प्रबंधन भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूल के लिए केस स्टडी है। 7 हजार 500 वितरण केंद्र, 5 हजार लोग, 1 लाख 50 मानव घंटे के हिसाब से काम करेंगे, जिससे समग्र वितरण प्रक्रिया 5 सिगमा ऑपरेशन का लक्ष्य हासिल करेगी।
आश्चर्य नहीं कि हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में इस कार्यक्रम को लेकर उत्सुकता है। दूरसंचार राज्य का विषय नहीं होने के बावजूद मुख्यमंत्री की दूरदर्शिता और ढ़ इच्छाशक्ति से ही स्काय का जन्म और क्रियान्वयन संभव हुआ है।
विकास का एक बड़ा पहलू महिलाओं का सशक्तीकरण और उद्यमिता विकास भी है। ‘द इकोनॉमिस्ट’ के अनुसार, दुनिया में कामकाजी महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत है, जबकि भारत में कामकाजी महिलाएं 2005 में 35 प्रतिशत थी, जो घटकर 26 प्रतिशत हो गई है, जबकि इसी अवधि में बंग्लादेश में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत बढ़ी है।
विश्व मुद्राकोष का अनुमान है कि यदि भारत में महिलाएं भी पुरुषों के बराबर काम करें तो भारत की जीडीपी 27 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी। मतलब 33 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी। संचार क्रांति योजना में 40 लाख महिलाओं को स्मार्टफोन देने का मतलब अवसरों की दुनिया में उनकी सशक्त उपस्थिति होगी। आर्थिक विकास में कनेक्टिविटी सशक्तीकरण का सबसे उत्तम उपाय है।
आखिरी बात कि स्काय को खैरात बांटने की योजना समझने वाली सोच ऐतिहासिक भूल के रूप में ही दर्ज होगी। हमने अब तक जो विश्लेषण किया, उसी से समझ में आता है कि यह मुफ्त सुविधा से आगे बढ़कर बहुत कुछ है। टाइम मशीन में बैठकर बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं, एक छोटे से देश स्वीडन का उदाहरण लिया जा सकता है। जहां सरकार ने वर्ष 1990 में हर परिवार को कम्प्यूटर खरीदने के लिए भारी सब्सिडी दी थी। नतीजतन वहां 2020 तक 90 प्रतिशत से अधिक घरों में सुपर फास्ट फाइबर आप्टिक ब्रॉडबैंड 100 एमबीपीएस स्पीड वाले कनेक्शन हो जाएंगे।
इस नई पहल ने स्वीडन को सर्वाधिक यूनीकॉर्न वाले देशों में शामिल कर दिया है। केन्या, युगांडा, तंजानिया जैसे देश भी ऐसे ही सबक की तरह हैं। पॉकेट में रॉकेट की तर्ज पर मोबाइल कनेक्टिविटी के इनोवेशन से छत्तीसगढ़ की जनता को अपनी प्रतिभा और क्षमता के सदुपयोग के नए अवसर मिलेंगे और देश की अर्थव्यवस्था को नई उड़ान के लिए नए पंख मिलेंगे।