मुंगेर के निसार हैं ‘लावारिस शवों के मसीहा’
मुंगेर, 5 अगस्त (आईएएनएस)| आज एक ओर जहां कई क्षेत्रों में धर्म और मजहब के नाम पर हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव की खबर देखने और सुनने को मिलती है, मगर बिहार के मुंगेर में एक ऐसे व्यक्ति भी हैं जो जिंदा व्यक्तियों की बात तो छोड़ दीजिए, शवों में भी धर्म और मजहब का अंतर नहीं देखते।
मुंगेर शहर के निमतल्ला मुहल्ले के रहने वाले निसार अहमद बासी एक ऐसे जिंदादिल इंसान हैं जो अपने और अपने परिवारों के गुजर-बसर के लिए घर के पास ही पकौड़े की दुकान चलाते हैं, मगर वे लावारिश शवों की इज्जत के साथ अंत्येष्टि करने में कोई कोताही नहीं बरतते। 82 वर्षीय बासी अब तक 2092 शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं।
निसार ने आईएएनएस को बताया कि लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता मोहम्मद हाफिज अब्दुल माजिद से मिली। उन्होंने बताया कि प्रारंभ में वे ऐसे ही लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर दिया करते थे, परंतु वर्ष 1958 में अंजुमन मोफीदुल इस्लाम संस्था की स्थापना कर यह काम उसी के माध्यम से करने लगा। इसका संस्था का उद्घाटन उस समय के विधानसभा अध्यक्ष गुलाम सरवर ने किया था।
निसार कहते हैं कि वे शवों को उनके मजहब और रीति-रिवाज के साथ ही अंतिम संस्कार करने की कोशिश करते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम के शवों को दफनाते हैं जबकि पहचान में आने वाले हिंदुओं के शवों को श्मसान में ले जाकर अंतिम संस्कार करते हैं। सबसे गौरतलब बात है कि वे शवों के अंतिम संस्कार के पूर्व उसकी तस्वीर लेना नहीं भूलते।
निसार आज औरंगजेब द्वारा बनवाई गई जामा मस्जिद के एक कोने में बैठकखाना बना रखा है, जहां किसी और की नहीं, बल्कि इन लावारिस शवों की ही तस्वीरें लगी हैं।
शवों के अंतिम संस्कार में आने वाले खर्च के विषय में पूछे जाने पर बेबाक निसार आईएएनएस को बताते हैं, एक शव के अंतिम संस्कार में दो से तीन हजार रुपये खर्च पड़ते हैं। इस राशि का इंतजाम कुछ चंदा और आसपास के लोगों द्वारा पूरी कर ली जाती है परंतु नहीं पूरे होने की स्थिति में खुद को मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन की राशि से करते हैं।
पढ़ने और लिखने के प्रति दिलचस्पी रखने वाले निसार उर्दू अखबारों में अक्सर लिखते भी रहते हैं। इसी दिलचस्पी के कारण लोगों के सहयोग से वर्ष 1972 में पूरबसराय में नेशनल उर्दू गर्ल्स कलेज की स्थापना की।
वे याद करते हुए कहते हैं कि उस समय इस काम में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गुलाम सरवर, पूर्व मंत्री रामदेव सिंह यादव एवं उपेंद्र प्रसाद वर्मा जैसे कई लोगों ने इस कार्य में मदद भी किया था।
किसी की मौत पर आंसू बहाने और उसकी अंतरात्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने वाले निसार कहते हैं, हमारे इंतकाल के बाद मेरे बच्चे इस काम को करेंगे या नहीं यह तो अल्लाह जाने, मगर उन बच्चों को इस बात का दुख जरूर होगा कि उनके पिता ने उनके लिए सिर्फ इन शवों की ही तस्वीरें छोड गए हैं।
‘लावारिस शवों के मसीहा’ के नाम से प्रसिद्ध निसार कहते हैं कि उन्हें इस काम से सुकून मिलता है। वे कहते हैं कि जीवन के अंतिम सांस तक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते रहेंगे। निसार गर्व से कहते हैं कि स्थानीय थाना में लावारिस शवों को यहां भेज देते हैं, जिससे उन शवों का ठीक ढंग से अंतिम संस्कार किया जा सके।
दुकान में उननकी मदद कर रहे उनके पुत्र नौशाद अहमद को भी अपने अब्बा के कामों पर गर्व है। नौशाद फा से कहते हैं, अल्लाह मुझ में भी ऐसी शक्ति दे कि मैं भी इस काम को आगे बढ़ा सकूं।