‘किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति से विचार प्रभावित’
नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति विचारों के मुक्त प्रवाह को प्रभावित करती है और इसके खिलाफ तब तक कदम नहीं उठाना चाहिए जबतक यह धारा 292 का उल्लंघन नहीं करता। यह धारा अश्लीलता पर प्रतिबंध लगाती है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ ने उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें एस. हरीश द्वारा लिखित मलयाली उपन्यास ‘मीशा’ के एक भाग को हटाने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, आप इस तरह के चीजों को बेवजह महत्व दे रहे हैं। इंटरनेट के युग में आप इसे मुद्दा बना रहे हैं। इसे भूल जाना बेहतर है।
वकील गोपाल शंकरनारायण ने अदालत से कहा कि जिस वाक्य को वो हटाने की मांग कर रहे हैं, उसमें पुजारी वर्ग के खिलाफ कटाक्ष किया गया है। अदालत ने हालांकि इस वाक्य को हटाने को लेकर अनिच्छा जताई।
अदालत ने आदेश को सुरक्षित रखते हुए उस अखबार को पांच दिनों के अंदर एक नोट दाखिल करने को कहा, जिसने इस विवादस्पद वाक्य को छापा था।