बिहार और झारखंड के 68 ब्लॉक में फैला काला जार बुखार
नई दिल्ली, 26 जुलाई (आईएएनएस)| देश के पूर्वी राज्य बिहार और झारखंड में विसरल लीशमेनियेसिस (वीएल) यानी की (काला जार या काला बुखार) 17 जिलों के 61 ब्लॉक से बढ़ कर 68 ब्लॉक में फैल गया है।
साथ ही काला जार संचरण का खतरा पिछले कुछ वर्षो में तेजी से बढ़ा है। काला जार विश्व के 76 देशों में फैला है और इसे दुनिया भर में प्रोटोजोअल वेक्टर-बोर्न बीमारी माना जाता है। अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल इसके 2,50,000 से 3,00,000 मामले सामने आते हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत से अधिक मामले भारत, बांग्लादेश, सूडान, दक्षिण सूडान, इथियोपिया और ब्राजील से होते हैं। यह रोग अक्सर इन देशों की सबसे गरीब आबादी को प्रभावित करता है।
हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, काला-अजार लीशमेनिया जीनस के प्रोटोजोअन परजीवी के जरिये धीमी गति से होने वाली एक स्वदेशी बीमारी है। भारत में, लीशमेनिया डोनोवेनी एकमात्र परजीवी है जो इस बीमारी का कारण बनता है और यह मुख्य रूप से रेटिक्युलोएंडोथेलियल सिस्टम को संक्रमित करती है। यह अस्थि मज्जा, स्प्लीन और लिवर में प्रचुरता में पाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, पोस्ट काला अजार डर्मल लीशमेनियेसिस (पीकेडीएल) एक ऐसी स्थिति है जब लीशमेनिया डोनोवेनी त्वचा की कोशिकाओं पर हमला करता है, वहां रहता है और विकसित होता है। उसके बाद यह रोग त्वचा पर घावों के रूप में प्रकट होता है। कुछ साल के उपचार के बाद कुछ मामले पीकेडीएल के रूप में प्रकट होते हैं। हाल ही में, ऐसा माना जाता है कि पीकेडीएल आंतों के चरण से गुजरे बिना ही दिखाई दे सकता है। हालांकि, पीकेडीएल के दौरान पर्याप्त डेटा अभी तक एकत्र नहीं किया जा सका है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया, प्रारंभ में, लीशमेनिया परजीवी सैंड फ्लाई के काटने से त्वचा पर घाव या अल्सर पैदा करता है। एक बार बीमारी बढ़ने के बाद, यह प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करती है। काला अजार दो से आठ महीने बाद सामने प्रकट होता है, जिसमें लंबे समय तक बुखार और कमजोरी सहित कुछ सामान्य लक्षण भी होते हैं।
डॉ. अग्रवाल ने बताया, काला अजार उन्मूलन के लिए भारत का पहला लक्ष्य 2010, 2015 और बाद में 2017 निर्धारित किया गया था। लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन दवा का विकास और उपयोग 2014 में एक गेम चेंजर साबित हुआ। जब अनजाने में इसे दिया गया, तो दवा ने एक ही दिन में बीमारी को ठीक कर दिया। दवा ने संक्रमण को नियंत्रित करने में एक बड़ा अंतर पैदा कर दिया है, लेकिन गरीबी और उपेक्षा जैसी सामाजिक परिस्थितियों के चलते रोग फैलता जा रहा है।
डॉ. अग्रवाल ने कुछ सुझाव देते हुए कहा, ऐसे कपड़े पहनें जो जितना संभव हो उतना त्वचा को कवर किये रहें। पूरी लंबाई की पैंट, पूरी आस्तीन वाली शर्ट और मोजे पहनने की सिफारिश की जाती है। अगर त्वचा का कोई हिस्सा खुला है, तो उस पर कीट प्रतिरोधी क्रीम लगायंे। सबसे प्रभावी कीट रिपेलेंट डीईईटी है। घर में सोने वाले कमरों में कीटनाशक दवा का स्प्रे करें। मकान की सबसे ऊपर वाली मंजिल पर सोएं, क्योंकि कीट ज्यादा ऊंचाई तक नहीं उड़ पाते हैं।
उन्होंने कहा, शाम से लेकर सुबह होने तक बाहर निकलने से बचें। यही वो समय होता है जब सैंड फ्लाई सबसे अधिक सक्रिय होती हैं। दरवाजे-खिड़कियों पर जाली लगाएं और एयर कंडीशनिंग का उपयोग करें। पंखा चलाने से कीट ठीक से उड़ नहीं पाएंगे और आपका बचाव हो सकेगा। मच्छरदानी लगाकर सोएं। यदि संभव हो मच्छरदानी पर पाइरेथ्रॉइड मिले कीटनाशक का छिड़काव करें।