कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट की पैठ से किसान बन जाएंगे बंधुआ मजदूर
मतलब, अब पारिवारिक खेती की जगह कापोरेट खेती होगी। आज के अन्नदाता, बंधुआ मजदूरों व गुलामों की जिंदगी बसर करने को मजबूर हो जाएंगे, जो अपनी भूख मिटाने के लिए उनके आदेशों पर काम करेंगे।
कॉरपोरेट द्वारा किसानों की समस्याओं के समाधान का मकसद किसानों के अस्तित्व को ही मिटाना है। मौजूदा दौर में किसान और किसानी के लिए जो नीतियां बन रही हैं और जो योजनाएं लागू की जा रही हैं, उनके पीछे यही सोच है।
किसान अगर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए यह अंतिम संग्राम नहीं लड़ पाया तो उसकी हस्ती हमेशा के लिए मिटा दी जाएगी। उनके लिए न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
कॉरपोरेट जगत ने पहले ही साजिशन देश की ग्रामीण उद्योग व्यवस्था की कमर तोड़ दी, जिससे गांवों का सारा उद्योग-धंधा चौपट हो गया। स्थानीय उत्पादों को घटिया व महंगा और कंपनी के उत्पादों को सस्ता और उत्तम क्वालिटी का बताकर प्रचारित किया जा रहा है।
इस प्रकार जो तस्वीर उभरकर आ रही है वह अत्यंत भयावह है। कॉरपोरेट जगत एक के बाद एक सभी प्राकृतिक संसाधनों और व्यवसायों पर कब्जा कर लिया है और अब देश के खेती और किसानों की बारी है।
कारपोरेट खेती को बढ़ावा देने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि किसानों के पास पूंजी की कमी है और छोटे-जोतों की खेती लाभप्रद नहीं है।
इस तरह ये लूट की व्यवस्था कायम कर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। कारपोरेट प्रत्यक्ष स्वामित्व या पट्टा या लंबी लीज पर जमीन लेकर खेती करेंगे या किसान समूह से अनुबंध करके किसानों को बीज, क्रेडिट, उर्वरक, मशीनरी और तकनीकी इत्यादि उपलब्ध करवा कर खेती करेंगे।
खेती की जमीन, कृषि उत्पादन, कृषि उत्पादों की खरीद, भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन, आयात व निर्यात आदि सारे कारोबार पर इनका नियंत्रण होगा।
यह दुनिया के विशिष्ट वर्ग की भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जैव खेती करेंगे और जैविक कृषि के उत्पादों को महंगे दाम पर बेचेंगे। इस पर उनका पूरा वर्चस्व होगा।
अनुबंध खेती और कॉरपोरेट खेती के अनुरूप नीतिगत सुधार के लिए उत्पादन प्रणालियों को पुनर्गठित करने और सुविधाएं प्रदान करने के लिए नीतियां और कानून बनाए जा रहे हैं। दूसरी हरित क्रांति के द्वारा कृषि में आधुनिक तकनीक, पूंजी निवेश, कृषि यंत्र, जैव तकनीक और जीएम फसलों और इनाम के माध्यम से अनुबंध खेती व कॉरपोरेट खेती के लिए सरकार एक व्यवस्था बना रही है।
डब्ल्यूटीओ का समझौता कॉरपोरेट खेती के प्रायोगिक प्रकल्प जैसे-अनुबंध खेती कानून, कृषि रिटेल और फसल बीमा योजना में विदेशी निवेश बढ़ाने के मकसद से किसानों के लिए संरक्षक सीलिंग कानून हटाने का प्रयास है।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने संसद में कहा था कि सरकार किसानों की संख्या 20 प्रतिशत तक ही सीमित करना चाहती है। मतलब यह 20 प्रतिशत किसान वही होंगे, जो देश के गरीब किसानों से खेत खरीद सकेंगे और जो पूंजी, आधुनिक तकनीक और यांत्रिक खेती का इस्तेमाल करने के लिये सक्षम होंगे। इस तरह शत प्रतिशत किसानों की खेती पूंजीपतियों के पास हस्तांतरित होगी और वह किसान कॉरपोरेट घराने होंगे।
भारत में जब अंग्रेजी राज स्थापित हुआ तब जमींदारी कानून के द्वारा लूट की व्यवस्था बनाई गई। लगान लगाकर किसानों को लूटा गया। अनुबंध खेती व कारपोरेट खेती जमींदारी प्रथा ही का नया रूप है।
भारत को कृषि प्रधान देश कहा गया है और किसानों से इसकी पहचान होती है, जिसे मिटाने का प्रयास किया जा रहा है।
देश के लोगों ने सोचा था कि आजादी उनके जीवन में खुशहाली लेकर आएगी। समता मूलक समाज के निर्माण का उनका सपना पूरा होगा। लेकिन यह सपना पूरा नहीं हो पाया और अब भारत फिर से गुलामी के जंजीरों में बंध चुका है।
(लेखक राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के संयोजक हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)