IANS

चोकसी ने घटिया सामानों को ऊंची कीमतों पर निर्यात किए : ईडी

मुंबई, 28 जून (आईएएनएस)| प्रवर्तन निदेशालय (ईडी ) ने गुरुवार को मुंबई अदालत में दाखिल अपने आरोप-पत्र में कहा कि गीतांजलि समूह के प्रमुख मेहुल चोकसी ने फर्जी विदेशी कंपनियों को घटिया सामनों के निर्यात ऊंची कीमतों पर किए और समूह के बही-खाते में तीसरे पक्ष का इस्तेमाल कर गड़बड़ी की गई।

ईडी ने यह भी आरोप लगाया है कि कर्ज की सीमा बढ़ाने व गड़बड़ी जारी रखने के लिए ‘फर्जी देनदार’ का इस्तेमाल किया गया।

चोकसी व 13 अन्य के खिलाफ मुंबई की एक विशेष अदालत में दायर आरोपपत्र कहा गया है, दूसरे देशों को निर्यात किए गए सामान घटिया थे, लेकिन उनका मूल्य बहुत अधिक था। निर्यात/आयात होने वाले सामानों का मूल्य चोकसी तय करता था।

आरोप-पत्र में चोकसी व 13 अन्य के अलावा पांच कंपनियां भी शामिल हैं, जो 13,500 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) धोखाधड़ी मामले में नामजद हैं।

वित्तीय जांच एजेंसी ने यह भी दावा किया कि हीरे या कीमती पत्थरों (अधूरे तौर पर तैयार और बेहद खराब गुणवत्ता वाले) से जड़े गहनों को विदेशों की फर्जी कंपनियों या हांगकांग में चोकसी की सीधे तौर पर नियंत्रित कंपनियों को निर्यात किया जाता था।

ईडी ने चोकसी के पांच विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के नाम दिए हैं। इसमें हांगकांग के 4सी डायमंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, हांगकांग के शनयांग गोंग एसआई लिमिटेड, एशियन डायमंड्स व ज्वेलरी एफजेडई व संयुक्त अरब अमीरात में गीतांजलि वेंचर्स डीएमसीसी व थाईलैंड में एबेक्रिस्ट लिमिटेड शामिल हैं।

आरोप-पत्र में कहा गया है, हांगकांग स्थित फर्जी कंपनियों द्वारा जेवरातों को तोड़कर हीरे या कीमती पत्थर निकाल लिए जाते थे। सोने व चांदी को स्थानीय प्रगालक इकाइयों में पिघलाकर इसे बुलियन में परिवर्तित कर दिया जाता था।

ईडी के अनुसार, चोकसी ने फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल किया। इसमें तापिंगयांग ट्रेडिंग लिमिटेड व हांगकांग में ट्रांस एक्जिम लिमिटेड व अल बुर्ज डायमंड व ज्वेलरी एफजेडई, एशियन डायमंडस ज्वेलरी एफजेडई, ईटर्निटी ज्वेल्स एफजेडई व अल अरब ज्वेल एफजेडई आदि शामिल हैं।

एजेंसी ने आरोप लगाया, इसके बाद बुलियन व निकाले गए हीरे व दूसरे कीमती पत्थर फिर से भारत कच्चे माल के तौर पर निर्यात किए जाते थे।

एजेंसी ने यह भी कहा कि भारत या हांगकांग से निर्यात किए गए इस तरह के माल को संयुक्त अरब अमीरात हवाईअड्डे पर सीमा शुल्क की मंजूरी नहीं मिल रही थी और इसलिए इसे इसी रूप में अगले गंतव्य हांगकांग या भारत में निर्यात किया जाता था।

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