डीसीसीबी में प्रतिबंधित नोट जमा पर नाबार्ड के आंकड़े भ्रामक
मुंबई, 24 जून (आईएएनएस)| राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने शुक्रवार को एक बयान में कहा था कि महाराष्ट्र के जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों (डीसीसीबी) में नोटबंदी के बाद गुजरात और केरल के डीसीसीबी के मुकाबले अधिक प्रतिबंधित नोट जमा हुए। नाबार्ड का यह बयान भ्रामक प्रतीत होता है।
मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन एस. रॉय द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत हासिल की गई जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र के कुल 370 डीसीसीबी में से 30 बैंकों में 3,985 करोड़ रुपये मूल्य के प्रतिबंधित नोट जमा हुए। इसके अनुसार एक बैंक में औसतन 132.83 करोड़ रुपये मूल्य के नोट जमा हुए।
लेकिन पड़ोसी राज्य गुजरात के 18 डीसीसीबी में कुल 3,640 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोट जमा हुए। इस प्रकार गुजरात के प्रत्येक डीसीसीबी में औसतन 202 करोड़ रुपये जमा हुए हैं।
यहां राज्य के डीसीसीबी में कुल कितनी राशि जमा हुई के बजाय यह यह देखना महत्वपूर्ण है कि राज्य के एक डीसीसीबी में औसतन कितनी रकम जमा हुई।
नाबार्ड द्वारा पूर्व में जारी आरटीआई के दस्तावेज के अनुसार, औसत रकम के मामले में गुजरात शीर्ष पर है और उसके बाद केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान आता है।
गुजरात के बाद केरल के 13 डीसीसीबी में 2,094 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोट जमा हुए और प्रति डीसीसीबी औसत रकम 161 करोड़ रुपये है।
वहीं, कर्नाटक के 20 डीसीसीबी में कुल 1,849 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोट जमा हुए, जहां प्रति बैंक औसत रकम 92 करोड़ रुपये है।
तमिलनाडु के 22 डीसीसीबी में कुल 1,514 करोड़ रुपये के प्रतिबंधित नोट जमा हुए, जहां प्रति बैंक औसत रकम 69 करोड़ रुपये है।
आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर आईएएनएस ने गुरुवार को एक रपट में कहा था कि अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) में 745.59 करोड़ रुपये मूल्य के प्रतिबंधित नोट मात्र पांच दिनों में जमा हुए थे, जोकि देशभर में किसी एक डीसीसीबी द्वारा प्राप्त जमा राशि में सबसे ज्यादा है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह इस बैंक के निदेशकों में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आठ नवंबर, 2016 को उस समय चलन में रहे 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट पर प्रतिबंध लगाए जाने के महज पांच दिनों के भीतर बैंक ने ये नोट स्वीकारे थे, क्योंकि नोटबंदी के पांच दिनों बाद डीसीसीबी को पुराने नोट जमा लेने से मना कर दिया गया था।
सरकार ने इस बावत फैसला काले धन के शोधन की आशंका के मद्देनजर लिया था।
नाबार्ड ने शुक्रवार को एडीसीबी का बचाव किया था और कहा था कि एडीसीबी के मात्र 9.37 प्रतिशत या 1.6 लाख खाताधारकों ने कुल राशि जमा की थी और प्रत्येक खाते की औसत जमा राशि 46,795 रुपये पड़ती है।
रॉय और अन्य ने इस बात पर आश्चर्य जताया है कि नाबार्ड अहमदाबाद डीसीसीबी के प्रवक्ता के रूप में क्यों काम कर रहा है। रॉय ने कहा, इस तरह तो भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई भी पंजाब नेशनल बैंक या आईसीआईसीआई बैंक जैसे बड़े बैंकों में जारी आपत्तिजनक गतिविधियों को जायज ठहराने के लिए बाध्य हो सकता है। देश के लिए यह कोई अच्छा रुझान नहीं है।
रॉय के द्वारा मांगी गई जानकारी नाबार्ड ने ही मुहैया करवाई थी।
कांग्रेस ने शनिवार को वित्तमंत्री पीयूष गोयल पर आरोप लगाया कि उन्होंने नाबार्ड को शुक्रवार को बयान जारी करने पर दबाव डाला, जिसका मकसद नोटबंदी घोटाले में भाजपा प्रमुख का बचाव करना था। कांग्रेस ने सरकार से मामले की पूरी जांच करवाने की मांग की।
वहीं, भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने भी शनिवार को सरकार की आलोचना की और मामले की जांच की मांग की।
शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र सामना और दोहपर का सामना के संपादकीय में सवाल उठाया, ऋण प्रदान करने में फर्जीवाड़ा करने वाले कितने बैंक के चेयरमैन को जेल भेजा गया?
शिवसेना ने पूछा कि एक ही बैंक (एडीसीबी) में कैसे इतनी बड़ी रकम जमा हुई। पार्टी ने इसे गंभीर मसला बताते हुए मामले की गहराई से जांच की जरूरत बताई।
हैरानी की बात है कि डीसीसीबी में भारी मात्रा में प्रतिबंधित नोट जमा हुए, जबकि 32 शीर्ष राज्य सहकारी बैंकों में बहुत कम प्रतिबंधित नोट जमा हुए।
नाबार्ड के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य सकारी बैंक (एससीबी) में कुल 1,128.44 करोड़ रुपये, तमिलनाडु के एससीबी में 382 करोड़ रुपये, दिल्ली के एससीबी में 375.28 करोड़ रुपये, कर्नाटक के एससीबी में 371.22 करोड़ रुपये, गोवा के एससीबी में 344.28 करोड़ रुपये, केरल के एससीबी में 349.63 करोड़ रुपये, मेघालय के एससीबी में 335.15 करोड़ रुपये, असम के एससीबी में 301.47 करोड़ रुपये और गुजरात के एससीबी में 110.85 करोड़ रुपये (पूर्व में भूल से 1.10 करोड़ रुपये का जिक्र किया गया) के प्रतिबंधित नोट जमा हुए।