पतंजलि ने रुचि सोया के लिए अडानी की बोली पर जताई आपत्ति
नई दिल्ली, 23 जून (आईएएनएस)| रुचि सोया के लिए अडानी की बोली पर ऋणशोधन अक्षमता व दिवाला की प्रक्रियाओं के तहत संकट के बादल छा गए हैं क्योंकि योग गुरु रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि आयुर्वेद ने साखदाताओं की समिति (सीओसी) को पत्र लिखकर रुचि सोया के लिए अडानी विल्मर की पात्रता पर चिंता जाहिर की है। पतंजलि के प्रवक्ता एस. के. तिजारावाला ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, हमने रुचि सोया के संबंध में 10 और 11 जून को सीओसी को पत्र लिखे हैं। लेकिन हमें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।
बताया गया कि पतंजलि ने पत्र में ऋणशोधन अक्षमता और दिवाला संहिता की धारा 29 के तहत मसलों का जिक्र किया है।
इस बीच ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीओसी में शामिल ऋणदाताओं की हाल ही में बैठक हुई जिसमें दोनों कंपनियों की बोलियों और ऋणशोधन में अक्षम कंपनी के लिए संबंधित समाधान की योजनाओं पर विचार किया गया।
धारा 29ए के अनुसार, ऋण शोधन में अक्षम कंपनी को निर्धारित पात्रता की शर्ते पूरी करनी होती है। इसका मतलब यह है कि अगर प्रमोटर कर्ज संकट से जूझ रही किसी दूसरी कंपनी से जुड़ा हो तो बोलीदाता को कॉरपोरेट ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के तहत समाधान योजना का प्रस्ताव पेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
रुचि सोया को सीआईआरपी के तहत दिसंबर 2017 में दाखिल किया गया था।
रुचि सोया के पास न्यूूट्रेला, महाकोश, सनरिच, रुचि स्टार और रुचि गोल्ड जैसे ब्रांड हैं।
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय साख दाताओं ने करीब 104 अरब रुपये का दावा ठोका है। साथ ही संचालक साखदाताओं ने भी 36 करोड़ रुपये का दावा ठोका है।
बिजनेस स्टेंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी समूह के चेयरपर्सन गौतम अडानी के रिश्तेदार और अडानी विल्मर के प्रबंध निदेशक प्रणव अडानी की शादी रोटोमैक समूह के पूर्व प्रमोटर विक्रम कोठारी की बेटी नम्रता के साथ हुई है जिन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा उनकी कंपनी द्वारा फर्जीवाड़ा करने की शिकायत के बाद फरवरी में गिऱफ्तार किया।
राष्ट्रपति द्वारा छह जून को अनुमोदित हालिया आईबीसी अध्यादेश में संबंधित व्यक्ति की परिभाषा में विस्तार करते हुए ‘संबंधित पक्ष’ और ‘रिश्तेदार’ शब्द जोड़े गए हैं, जिसके तहत पति, पत्नी, भाई, मां जैसे परिवार के सदस्य और परिवार के अन्य रिश्तेदार आते हैं जिनमें ससुराल पक्ष के लोग भी शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, दोनों बोलीदाताओं की समाधान योजनाएं आईबीसी अध्यादेश द्वारा हाल में किए गए संशोधन से पहले सौंपी गई थीं इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि धारा 29 एक के तहत विस्तार किए गए मानदंड वर्तमान मामले में लागू होंगे या नहीं।