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धूल भरी आंधी महामारी से कम नहीं : विशेषज्ञ

नई दिल्ली, 23 जून (आईएएनएस)| उत्तर भारत में धूल भरी आंधी और असामान्य मौसमी बदलावों की वजह से तमाम शहरों में खराब वातावरण एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है, इसका असर इस कदर बढ़ रहा है कि स्थिति किसी महामारी से कम नहीं रह गई है। वायु प्रदूषण स्ट्रोक, दिल की बीमारियों, फेफड़े के कैंसर और क्रॉनिक व गंभीर श्वसन संबंधी समस्या जैसी कई जानलेवा बीमारियों का एक प्रमुख कारण है। आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी में जयपुर के स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट के प्रोफेसर और डीन इंचार्ज डॉ. गौतम साढू ने कहा, दुर्भाग्यवश, दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख महानगर, जो देश के सबसे घनी आबादी वाले शहर हैं, वे दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। दिल्ली में पर्टिकुलेट मैटर का स्तर 143 माइक्रोग्राम प्रति क्युबिक मीटर पर 2.5 दर्ज हुआ है, जो कि सुरक्षित सीमा से 14 गुना अधिक है। वहीं जयपुर और चंडीगढ़ में भी पीएम का स्तर 2.5 दर्ज हुआ है जो कि सुरक्षित सीमा से काफी ज्यादा है।

उन्होंने कहा, यह सूक्ष्म प्रदूषक कण स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं क्योंकि ये सांस के जरिए फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं, जिसके चलते अस्थमा, श्वसन तंत्र में सूजन, फेफड़े का कैंसर और सांस से सम्बंधित अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं।

मौसम विज्ञानी का कहना है कि हाल में आई धूल भरी आंधियों का कारण सशक्त तूफान की स्थिति का नतीजा है, जो रातभर बरकरार रही, इसके चलते बेहद तेज गति से हवाएं चलीं और अपने साथ धूल व धुंध को उठाकर पहले से ही प्रदूषित उत्तर भारत के शहरों की आबोहवा को और प्रदूषित कर दिया। ठंड के दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक खतरनाक सीमा तक पहुंच जाता है क्योंकि ठंड के दिनों में प्रदूषक तत्व धुंध के साथ वातावरण में जमे रह जाते हैं और इनका असर छटने में ज्यादा समय लगता है।

दुनिया भर में, 91 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जहां प्रदूषण का स्तर असुरक्षित सीमा तक पहुंच चुका है। मौत के 23 प्रतिशत मामलों का संबंध किसी न किसी प्रकार से प्रदूषण से होता है, जिसे रोका जा सकता है। छोटे बच्चे, महिलाएं बाहर काम करने वाले मजदूर और बुजुर्ग लोग लगातार बदतर स्तर पर पहुंच रहे वायु प्रदूषण की चपेट में आसानी से आ सकते हैं।

इससे बचाव के लिए सुझाव देते हुए प्रोफेसर ने कहा, अपने आस-पास अधिक पेड़-पौधे लगाकर आप न सिर्फ वातावरण को स्वच्छ रख सकते हैं बल्कि अपने लिए ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा सकते हैं और पर्टिकुलेट मैटर की सघनता को भी कम कर सकते हैं।

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