चालू सत्र में 20 लाख टन चीनी का निर्यात दूर की कौड़ी
नई दिल्ली, 21 जून (आईएएनएस)| सरकार ने 30 सितंबर तक 20 लाख टन चीनी निर्यात का लक्ष्य रखा है, मगर इसे हासिल करना दूर की कौड़ी प्रतीत हो रहा है। चालू सत्र में ज्यादा से ज्यादा आठ लाख टन तक ही चीनी का निर्यात संभव है, क्योंकि बरसात का मौसम शुरू हो जाने से चीनी निर्यात में दिक्कत आ सकती है। वैसे भी, चीनी को थोड़ा भी पानी मिल जाए तो उसे पिघलते देर नहीं लगती।
यही वजह है कि चीनी मिलों ने सरकार से इस समय सीमा को बरसात के मौसम के बाद बढ़ाकर 31 दिसंबर तक करने की मांग की है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश पी. नाइकनवरे ने गुरुवार को आईएएनएस से बातचीत में कहा कि चालू चीनी उत्पादन व विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में महज सात से आठ लाख टन चीनी का निर्यात ही हो सकता है, क्योंकि बारिश शुरू होने से आगे निर्यात में दिक्कतें आ सकती हैं।
उन्होंने कहा, बरसात के कारण महाराष्ट्र और गुजरात के बंदरगाहों से चीनी निर्यात संभव नहीं हो पाएगा। लेकिन हमने सरकार से मांग की है कि न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत निर्धारित 20 लाख टन चीनी निर्यात के लक्ष्य की समय सीमा 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दिया जाए, ताकि बरसात के बाद चीनी का निर्यात संभव हो।
इसके अलावा पिछले दिनों घरेलू बाजार में चीनी के दाम में बढ़ोतरी से मिलों की दिलचस्पी भी निर्यात में कम दिखने लगी है।
नाइकनवरे ने बताया कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जो चीनी की दरें हैं उसके अनुसार, भारतीय मिलों को 1900 रुपये प्रति क्विंटल पर चीनी निर्यात करनी होगी जबकि सरकार द्वारा तय न्यूनतम एक्स मिल रेट 29 रुपये प्रति क्विंटल है और मौजूदा मिल दरें कहीं इससे ऊपर चल रही हैं।
उन्होंने कहा, इस समय मिलों को चीनी निर्यात करने में कम से कम 10-11 रुपये प्रति किलोग्राम का घाटा हो रहा है, जबकि सरकार द्वारा जो गो के मूल्य पर 55 रुपये प्रति टन का उत्पादन प्रोत्साहन दिया जा रहा है, उससे मिलों को महज आठ रुपये प्रति किलो की कमी की भरपाई हो पाएगी। फिर भी दो से तीन रुपये प्रति किलो का घाटा है।
एनएफसीएसएफ के प्रबंध निदेशक ने बताया कि अब तक 3.5 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हो चुके हैं और आगे संभावित बाजार की तलाश की जा रही है। उन्होंने बताया कि भारतीय चीनी की गुणवत्ता को लेकर भी इसका बाजार सीमित हो गया है।
उन्होंने कहा, भारतीय चीनी का एलक्यूडब्ल्यू यानी लो क्वालिटी ह्वाइट का ठप्पा लग गया है, जिसके कारण इसका बाजार श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के अलावा पूर्वी अफ्रीकी देश सूडान, सोमालिय आदि तक ही सीमित हो गया है। हालांकि संभावित बाजार की तलाश की दिशा में हमारा प्रयास जारी है। हम इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन आदि के बाजार में अपनी चीनी खपाने की कोशिश में जुटे हैं।
नाइकनवरे ने कहा, हम कच्ची चीनी बेचने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। दुबई की रिफाइनरी से लेकर आसपास के देशों की बड़ी रिफाइनरी को कच्ची चीनी बेचने के अवसर हमारे पास हैं, क्योंकि ब्राजील और थाईलैंड से कच्ची चीनी मंगाने में उनको भारत के मुकाबले ज्यादा किराया यानी फ्रेट लगता है। इंडोनेशिया, मलेशिया और चीन को भी कच्ची चीनी की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि चीनी निर्यात होने से भी गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान सुनिश्चित हो पाएगा और अगले साल से पेराई सुचारु ढंग से सुनिश्चित हो पाएगी। गन्ना किसानों का मिलों पर अभी भी 22,000 करोड़ रुपये बकाया है।
देश में इस साल अब तक 321.65 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है और उत्तर प्रदेश की चार चीनी मिलों में अभी तक पेराई जारी है। नाइकनवरे ने कहा कि 2017-18 में 322 लाख टन चीनी का उत्पादन हो सकता है।
पिछले साल का बकाया स्टॉक 40 लाख टन है। इस तरह चालू सत्र में कुल आपूर्ति 362 लाख टन है, जबकि घरेलू खपत महज 255 लाख टन। ऐसे में 107 लाख टन चीनी 30 सितंबर, 2018 को अगले साल के लिए बची रहेगी, जो तकरीबन पांच महीने की घरेलू खपत के बराबर है।