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विशेष : देवभूमि की कोख में होगा योग का महाकुंभ

जानिए देवभूमि और योग कैसे हैं एक दूसरे के पूरक

योग: कर्मसु कौशलम्‌’ … वेदों में योग का यह वर्णन अपने आप में मानव को शिखर तक पहुंचाने का परिचय देता है। इस मंत्र का अर्थ है, योग से मानव कर्मों में कुशलता आती है और यही योग मानव को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने का साधन बनता है। योग की जिस विद्या को ऋषि-मुनियों ने देवभूमि में मां गंगा के तट पर कड़ी तपस्या से पाया, उसे फिर से उत्तराखंड की धरती अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर महसूस करेगी।

वैसे तो योग का इतिहास पुराणों में देखने को मिलता है,  ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर की योगमुद्रा को देख वैदिक काल में कई देवों और ऋषि-मुनियों ने योग शिक्षा का अध्ययन कर उनकी साधना की थी। लेकिन मानव सभ्यता को सबसे पहले योग का ककहरा समझाने वाले ऋषि पातंजलि ने योगसाधना की रचना काशी और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र ( अब उत्तराखंड ) से की ।

योग साधना करते हुए भगवान शिव। ( फोटो – गूगल ईमेज)

उत्तराखंड में योग की उत्पत्ति के बारे में यूनिवर्सिटी अॉफ पतंजली के वरिष्ठ प्रोफेसर आरबी भंडारी बताते हैं, ” ऐसा कहा जाता है कि सप्त ऋषियों नें देवभूमि में मां गंगा के किनारे कठिन तपस्या से योगविद्या ग्रहण की थी। वेदों से प्राप्त हुई योग विद्या को ऋषियों ने तीन प्रमुख अंगों में बांटा। ये अंग थे –  कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग। ऋषि पतंजली ने मानवों को इस योगविद्या को सरलता से समझाने का काम किया।”

कड़ी तपस्या से मिली थी योग विद्या। ( फोटो – गूगल इमेज / इंडिया डिवाइन )

इस वर्ष चौधे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर जब मुख्य आयोजन के लिए देवभूमि उत्तराखंड को चुना गया है, तो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि योग खुद कई वर्षों की तपस्या के बाद अपनी जननी देवभूमि को गोद में खिलखिला उठेगा। उत्तराखंड की सीमा में प्रवेश होते ही मन में बस योग का ही स्वर गूंजेगा । हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश और फिर राजधानी देहरादून तक फैले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के विज्ञापन अपने आप में इस कथन को जीवित कर देते हैं।

चौधे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर उत्तराखंड के कई स्थानों पर लगाई गई होर्डिंग।

योग विद्या में ऋषि पतंजली ने यह लिखा है – यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति।। … इसका अर्थ है योग के बिना विद्वान व्यक्ति का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं हो सकता है। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है। ऐसा कहा जाता है कि वैदिक काल में यज्ञ और योग का बड़ा महत्व था। उत्तरकाशी से लेकर ऋषिकेश व हरिद्वार और फिर काशी तक ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ ही शस्त्र और योग की शिक्षा भी दी जाती थी।

एफआरआई में हुए योगाभ्यास क्रार्यक्रम में लोगों ने की प्रैक्टिस ।

” यह शुभ घड़ी है पूरे देश के लिए और खासकर देवभूमि उत्तराखंड के लिए कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का मुख्य आयोजन यहीं पर हो रहा है। इससे न केवल उत्तराखंड में योग साधना का महाकुंभ फिर से जीवित होगा, बल्कि यह विश्व भर में दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले लोगों को देवभूमि की धरोहर (योग) के लाभकारी गुणों को जानने में मददगार साबित होगा।” यूनिवर्सिटी अॉफ पतंजली के वरिष्ठ प्रोफेसर आरबी भंडारी आगे बताते हैं ।

ऋग्वेद में योग की वर्णन किया गया है – स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:।।
इसका मतलब है कि –  परमात्मा हमारे योग समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति  और ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे।

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