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सीमा का मकसद : जिंदगी की जंग में लड़कियों का हो भाग्योदय

हरदोई (उत्तर प्रदेश), 10 जून (आईएएनएस)| धुंधले प्रकाश में चल रही कक्षा की दीवारें बच्चों की बनाई पेंटिंग से अटी पड़ी हैं। इसी कक्षा के एक कोने में सीमा यादव 25 लड़कियों को बिठाकर पढ़ा रही हैं।

इनमें से कुछ लड़कियां ऐसी हैं जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है तो कुछ ने देखा भी तो शुरुआती दौर में ही पढ़ाई से विमुख हो गईं।

सीमा प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 125 किलोमीटर दूर हरदोई जिले में केयर इंडिया की ओर से संचालित नवोन्मेषी स्कूल ‘उड़ान’ में 10 से 16 साल की उम्र की लड़कियों को पढ़ाती हैं।

इस स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां महज 11 महीने में छह साल का पाठ्यक्रम पूरा करती हैं। इन्हें पांचवीं की वार्षिक परीक्षा में शामिल किया जाता है जिसके बाद इनका दाखिला प्रदेश के किसी औपचारिक स्कूल में होता है। बुनियादी शिक्षा के इस स्कूल की स्थापना 1999 में सर्वोदय आश्रम के सहयोग से केयर इंडिया प्रोजेक्ट के तहत की गई।

भारत में स्कूली शिक्षा से विमुख होने वाली लड़कियों की दर चिंता का विषय है। वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण-2017 की रिपोर्ट (एएसईआर) के अनुसार, आठ साल की बुनियादी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई जारी नहीं रखने वाले बच्चों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की दर ज्यादा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, प्राथमिक स्तर पर 5.7 फीसदी लड़कियों का नामांकन स्कूलों में नहीं हो पाता है, जबकि 4.7 फीसदी लड़के स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं। बढ़ती उम्र के साथ लड़के व लड़कियों की शिक्षा में यह खाई बढ़ती ही चली जाती है। माध्यमिक स्तर 18 वर्ष की उम्र होने पर 32 फीसदी लड़कियां सकूल से विमुख हो जाती हैं जबकि लड़कों में यह आंकड़ा 28 फीसदी है।

सर्वेक्षण में लड़कियों के स्कूल से विमुख होने का मुख्य कारण परिवारिक प्रतिबंध बताया गया है। अध्ययन में यह भी जाहिर हुआ है कि 70 फीसदी युवती मां बन गई हैं, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है।

मिर्जापुर जिले की रहने वाली सीमा महज 17 साल की थीं तभी उन्होंने अपनी पढ़ाई खर्च चलाने के लिए सबसे पहले यहां पढ़ाना शुरू किया। वह पिछले 18 साल से इस आवासीय स्कूल से जुड़ी हैं।

इस स्कूल की हर लड़की के पास साझा करने को घरेलू हिंसा, गरीबी, अस्पृश्यता, भेदभाव और हाशिये पर होने की अपनी दुखद कहानी है जोकि उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में देखने व सुनने को मिलती हैं। सीमा भी इससे अलग नहीं है।

सीमा का बचपन घरेलू हिंसा की दहशत में बीता। अपने कमरे के भीतर वह असहाय होकर अपने बेरोजगार पिता का हिंसात्मक व्यवहार देखती रहती थी जो उनकी मां पर अपनी कुंठा का कहर बरपाते थे। वह उस माहौल से निकलने के लिए जूझती रही।

आखिरकार दूसरी जाति के एक आदमी के साथ वह भाग खड़ी हुई। लेकिन उसकी तकलीफ कम होने बदले और बढ़ ही गई। सीतापुर अदालत में शादी करने के कुछ ही साल बाद उसके पति हरिराम सिंह कैंसर की बीमारी के कारण कुछ साल बाद चल बसे।

सीमा ने बताया, मेरे पिता ने मुझसे सबकुछ भूलकर यह बहाना बनाने की सलाह दी कि मैंने कभी शादी की ही नहीं। लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं तभी शादी करूंगी जब वह मुझे यह भरोसा दिलाएंगे कि कोई घरेलू हिंसा नहीं होगी। उनके पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था।

उन्होंने कहा, बचपन में आपके साथ जो घटना घटती है उसका असर आपके जीवन में हमेशा बना रहता है। मैंने अपने घर में डरावना माहौल देखा था जिससे मेरी रूह कांप जाती थी।

बचपन में उस पर पढ़ाई छोड़कर फालतू काम करने का दबाव रहता था लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत की। उनकी जिंदगी भेदभाव और गरीबी के कठिन दौर से गुजरी। लेकिन उन्होंने हर मुश्किलों का डटकर सामना किया और किसी तरह ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की। उनके गांव में कुछ ही लड़कियां ग्रेजुएट की डिग्री हासिल कर पाई थीं।

पोस्ट ग्रेजुएट और बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद सीमा ने सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा पास की।

वह लड़कियों को गणित पढ़ाती है। वह मुसीबतों से जूझ रही लड़कियों को जिदंगी जीने की कला सिखाकर उनकी तकदीर बदलने की कोशिश कर रही है क्योंकि शिक्षा से ही उनके जीवन में बदलाव आ सकता है।

उड़ान स्कूल में पढ़ाई कर रही 14 साल की सीमा और 16 साल की रीतू ने कहा, सीमा दीदी उनकी प्रेरणा हैं।

रीतू ने बताया कि उसके पिता शराब पीकर घर में मारपीट करते थे। उसने कहा, कुछ महीने पहले जब इस स्कूल में हमारा दाखिला हुआ तो हम कुछ नहीं जानते थे। हमें हाथ में कलम थामने में भी डर लगता था। हम पढ़ना, लिखना या ढंग से बोलना भी नहीं जानते थे क्योंकि आत्मविश्वास का अभाव था। लेकिन अब हम कहानी की किताबें पढ़ते हैं और गणित के सवाल बना लेते हैं। हम पढ़ाई के अतिरिक्त कार्यकलापों में भी हिस्सा लेकर उसका आनंद उठाते हैं।

रीतू पुलिस अधिकारी बनकर अपने गांव में शराबियों को अपराध करने से रोकना चाहती है।

स्कूल की कार्यक्रम समन्वयक उर्मिला श्रीवास्तव के अनुसार, उड़ान परियोजना से उत्तर प्रदेश की पूरी शिक्षा व्यवस्था प्रेरित है।

उन्होंने कहा, आरंभिक शिक्षा के मॉड्यूल को अब उत्तर प्रदेश के सभी प्रारंभिक विद्यालयों में शामिल किया गया है इससे यह पता चलता है कि हमारी पाठ्यचर्या कितनी प्रभावोत्पादक है।

कार्यक्रम प्रबंधक वंदना मिश्रा ने कहा, हम लड़कियों को न सिर्फ पढ़ाते हैं बल्कि हम उनको नेतृत्व कौशल, व्यवहार कला और व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा भी देते हैं जोकि जीवन के लिए जरूरी है। जिस प्रदेश में जातीयता का बोलबाला और निरक्षरता और बाल विवाह की प्रथा हो वहां शिक्षा से ही सामाजिक बदलाव आ सकते हैं।

उड़ान की अध्यापिकाओं की ओर से करवाए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस स्कूल से पढ़कर निकलीं 1,567 लड़कियों में 460 अब तक अविवाहित हैं। शिक्षित होने से लड़कियां अब अपनी मर्जी के जीवनसाथी चुनने में सक्षम हो गई हैं। ये लड़कियां न सिर्फ खुद की बल्कि अपने भाई-बहनों की परबरिश करने में भी सक्षम हैं।

सीमा ने 2017 में अपने रिश्तेदार से नौ साल के लड़के अनिरुद्ध को गोद लिया। वह कहती है कि कमजोर पृष्ठिभूमि के बच्चों को तालीम से उनको इतनी संतुष्टि मिलती है कि उसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं।

अपने इस अनुभव को साझा करते हुए सीमा की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, मैं उनकी आंखों में खुद को देखती हूं। मैं उनकी जिंदगी से अपने संघर्ष को जोड़ती हूं। इससे मुझे उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए ज्यादा कोशिश करने की प्रेरणा मिलती है।

(यह साप्ताहिक फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

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