मप्र में 2,37000 अध्यापकों का कल्याण, कमलनाथ ने संघर्ष की जीत बताया
भोपाल, 29 मई (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश सरकार ने लगभग 24 साल पुराने दिग्विजय सिंह के कार्यकाल के फैसले को बदलते हुए मंगलवार को अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन का निर्णय लिया।
इस निर्णय को जहां स्वयं शिवराज सिंह चौहान ने ऐतिहासिक करार दिया है, वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने इसे अध्यापकों के संघर्ष की जीत बताया। आधिकारिक जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में यहां मंगलवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य के 2,37000 अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन करने का निर्णय लिया गया और इन सभी को एक जुलाई से सातवें वेतनमान का लाभ देने को भी मंजूरी दे दी गई।
राज्य में 2,37000 अध्यापक पंचायत और नगर निकाय के अधीन आते हैं। इन अध्यापकों की लंबे अरसे से मांग थी कि उनका शिक्षा विभाग में संविलियन किया जाए, जिसे सरकार ने मंगलवार को स्वीकार कर लिया।
इन अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन किए जाने के साथ ही इन्हें सातवें वेतनमान का लाभ भी मिलेगा। यह लाभ एक जुलाई, 2018 से दिया जाएगा। इसके अलावा संविदा कर्मचारियों को सेवा से अलग नहीं किया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज ने अध्यापकों के शिक्षा विभाग में संविलियन का निर्णय लिए जाने के बाद कांग्रेस की दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस ने शिक्षक कैडर को डाइंग (समाप्त) घोषित कर गुरुजी-शिक्षाकर्मी बना दिए थे, इसे भाजपा की सरकार ने खत्म कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा, आज का दिन मध्यप्रदेश के लिए ऐतिहासिक दिन है, आज उस अन्याय को जो मध्यप्रदेश की भावी पीढ़ी के साथ कांग्रेस की सरकार ने शिक्षक के कैडर को डाइंग घोषित किया था, उसे आज कैबिनेट में निर्णय कर समाप्त किया गया है। उस समय शिक्षक के कैडर को डाइंग घोषित कर उनकी जगह गुरुजी और शिक्षाकर्मी बना दिए गए थे। इससे पूरे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था चौपट कर दी गई थी।
मुख्यमंत्री को अपने शासन के 15वें साल में शिक्षकों के साथ अन्याय का अहसास हुआ। उन्होंने कहा कि यह केवल शिक्षकों के साथ अन्याय नहीं था, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ किया गया सबसे बड़ा अपराध था। वर्तमान राज्य सरकार ने पहले कर्मी कल्चर को समाप्त किया, अब कैबिनेट में यह फैसला लिया है कि अध्यापकों का संविलियन शिक्षा विभाग में कर शिक्षकों का एक कैडर कर दिया जाएगा। अब शिक्षकों का एक ही कैडर है और ये राज्य शासन के कर्मचारी हैं। यह नहीं होने के कारण वे कई सुविधाओं से वंचित थे।
उन्होंने कहा, अब राज्य सरकार के नियमित कर्मचारी होने से इन्हें सभी सुविधाएं मिलेंगी और साथ ही मान-सम्मान मिलेगा। हमें विश्वास है कि इस फैसले के बाद प्रदेश में पढ़ाई की व्यवस्था और बेहतर होगी तथा गुणवत्ता बढ़ेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज एक और निर्णय लिया गया है कि अब कोई भी संविदा कर्मचारी निकाला नहीं जाएगा। अब जो भर्ती होगी, उसमें निश्चित प्रतिशत तक संविदा कर्मचारियों में से पद भरे जाएंगे।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने मध्यप्रदेश सरकार के अध्यापकों को शिक्षक बनाने संबंधी फैसले को अध्यापकों के संघर्ष की जीत बताते हुए संविदा कर्मचारियों को नियमित न किए जाने को उनके साथ धोखा करार दिया है। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि आज कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण न कर ढाई लाख संविदा कर्मचारियों के साथ धोखा किया है।
कमलनाथ ने अध्यापकों को स्कूल शिक्षा विभाग में शामिल किए जाने के निर्णय पर कहा, मैं अध्यापकों के संघर्ष और जज्बे को सलाम करता हूं। अध्यापक लोग सरकार के जुल्म और धमकियों के आगे नहीं झुके। आखिर मुख्यमंत्री को यह मानना पड़ा कि अध्यापक देश का भविष्य हैं और उनके संविलियन की मांग जायज है। लेकिन अफसोस है कि मुख्यमंत्री ने पूर्व में अध्यापकों की मांग नहीं मानी और हमारी अध्यापिका बहनों को मुंडन तक कराना पड़ा था। आंदोलन स्थल का किराया चुकाने के लिए अपने गहने तक बेचने पड़े थे।
कमलनाथ ने मांग की, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अध्यापकों के शिक्षा विभाग में संविलियन में हुई बहुत देरी के लिए अध्यापक भाइयों और बहनों से माफी मांगनी चाहिए।
वहीं राज्य अध्यापक संघ के प्रांताध्यक्ष जगदीश यादव ने मुख्यमंत्री के प्रति आभार जताते हुए कहा कि अध्यापकों को यह हक पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है।