दुर्लभ बीमारियों पर राष्ट्रीय नीति को करना जरूरी : विशेषज्ञ
नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)| दुर्लभ बीमारियों के इलाज से जुड़ी राष्ट्रीय नीति को स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले साल मंजूरी देकर महत्वपूर्ण कदम उठाया था लेकिन अब इस नीति को प्रभावी तरीके से लागू करने पर जोर देने की जरूरत है।
ऑगेर्नाइजेशन फॉर रेयर डिसीज (दुर्लभ बीमारियों से जुड़ा रोगियांे का ग्रुप) के सहसंस्थापक प्रसन्ना शिरोल ने कहा, लोगों में दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरूकता की कमी, डायग्नोस्टिक सुविधाओं का अभाव, रोगी के लिए इलाज की लागत का प्रबंध न कर पाना और चिकित्सकों द्वारा लक्षणों की पहचान न कर पाने जैसी विभिन्न चुनौतियों के कारण राष्ट्रीय नीति की जरूरत महसूस हुई। यह नीति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सरकार दुर्लभ बीमारियों को लेकर संवेदनशील है और इसलिए इसे राष्ट्रीय एजेंडे पर भी रखा गया है।
उन्होंने कहा, इसमें रोगियों के लिए चलाए जा रहे संगठनों और हेल्थकेयर से जुड़े लोगों के काम की वजह से संभव हो पाया है। इससे पहले नीति निर्माताओं और पब्लिक हेल्थ से जुड़े अधिकारियों को इन स्थितियों के बारे में कुछ खास नहीं पता था। लेकिन अब लोगों की सोच में बदलाव आया है, जिसके चलते कई महत्वपूर्ण काम किए जा रहे हैं और इन्हीं का नतीजा राष्ट्रीय नीति है। हालांकि इसे लागू करना अभी बाकी है और हमंे उम्मीद है कि यह नीति जल्द ही प्रभावी तरीके से लागू होगी।
दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए याचिका दायर करने वाले सामाजिक कानूनी जानकार एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने कहा, शुरुआत में केंद्र सरकार सेंट्रल टेक्नीकल कमेटी (सीटीसी) का गठन करती है जो रोगियों के पत्रों की प्रक्रिया को देखते है। इसके साथ इंटर मंत्रालय कमेटी और टेक्नीकल कम प्रशासनिक कमेटी बनाई गई है। राज्य स्तर पर भी कई काम देखने को मिल रहे है। दिल्ली सरकार ने घोषित किया है कि दुर्लभ बीमारियों से जुड़े बोर्ड का गठन रोगियों के प्रार्थना पत्रों की समीक्षा करेगा और अन्य तकनीकी जानकारियों को भी संचालन करेगा।
उन्होंने कहा, इसके अलावा तमिलनाडु सरकार भी दुर्लभ बीमारियों की पहचान के लिए दस करोड़ रुपये की लागत का डायग्नोस्टिक सुविधा मुहैया कराएगी। इसके अलावा रोगियों को राहत देने के लिए कर्नाटक और तमिलनाडु में दुर्लभ बीमारियों के रोगियों के लिए सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) स्थापित किए गए है। हालांकि अभी भी इस ओर कई काम करने बाकी है और इस कमी को पूरा करना जरूरी है।
लायसोसोमल स्टोरेज डिस्आर्डर्स सोसायटी (एलएसडीएसएस) के अध्यक्ष मंजीत सिंह ने कहा, राष्ट्रीय नीति की घोषणा हुए करीब सालभर हो गया है लेकिन अभी तक लागू करने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। पिछले छह महीने में रेयर डिसीज सेल को देशभर से करीब 100 प्रार्थना पत्र मिल चुके है लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है। ऐसे में राज्य सरकारों का कर्तव्य बनता है कि वह प्रत्येक केस को देखे और उन्हें इलाज से जुड़ी सिफारिश प्रदान करें।
उन्होंने कहा, देश के कई राज्यों को तो राष्ट्रीय नीति के बारे में कुछ ज्यादा पता ही नहीं है और न ही इसे लागू करने की कोई स्पष्टता है। इसके अलावा यह भी साफ नहीं है कि इलाज कराने के लिए जो आर्थिक मदद दी जाएगी उसमें सिर्फ बीपीएल रोगी ही होगे या फिर एपीएल रोगियों को भी शामिल किया जाएगा। इसलिए सरकार से अनुरोध है कि वह इसे स्पष्ट करें और नीति को जल्द से जल्द लागू करें।