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जेनेटिक टेस्टिंग और टारगेटेड थेरेपी से कैंसर में हो सकता है सुधार : चिकित्सक

नासिक, 28 मई (आईएएनएस)| भारत में फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों पर चिकित्सकों का कहना है कि जेनेटिक टेस्टिंग और टारगेटेड थेरेपी ड्रग्स से मरीजों की जीवनरक्षा में उल्लेखनीय रूप से सुधार हो सकता है।

रिसर्च एवं डायग्नॉस्टिक्स कंपनी मेडजेनोम की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. विद्या एच. वेल्दोर ने कहा, कैंसर के ज्यादातर मामलों की प्रमुख वजह जेनेटिक म्युटेशन है, इसमें फेफड़ों का कैंसर भी शामिल है। टिश्यू बायप्सी के जरिए जरिए कैंसरकारी जेनेटिक म्युटेशन की पहचान करने के बाद डॉक्टर अधिक प्रभावशाली और बेहतर लक्षित दवाएं मरीज को दे सकते हैं, जिनसे कैंसरकारी कोशिकाओं पर निशााना साधा जा सकता है।

उन्होंने कहा, इस प्रकार क्लीनिकल नतीजों में सुधार होता है और कीमोथेरेपी के साइड-इफेक्ट्स से भी बचा जा सकता है। फेफड़ों के कैंसर के अलावा अन्य सभी प्रकार के कैंसर में जेनेटिक टेस्टिंग के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है।

भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी तंबाकू खपत वाला देश है। यहां हर तीसरा वयस्क उपभोक्ता किसी ने किसी प्रकार के तंबाकू का सेवन करता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव काफी अधिक है, तंबाकू और तंबाकू जनित धुएं में 60 से अधिक ऐसे रसायन पाए जाते हैं जिन्हें कैंसरकारी माना जाता है। कैंसर की वजह से होने वाली मौतों में 42 प्रतिशत पुरुष और 18.3 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।

तंबाकू की वजह से उत्पन्न होने वाले सर्वाधिक कैंसर में मुंह और फेफड़ों का कैंसर सबसे प्रमुख है। तंबाकू की वजह से केवल व्यक्ति को ही नुकसान नहीं पहुंचता। यह स्वास्थ्य रक्षा के खर्चो को बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादकता में कमी लाता है।

फेफड़ों का कैंसर दो प्रकार का होता है, पहला नॉन स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) जो कि सभी प्रकार के लंग कैंसर में 80 फीसदी होता है और धूम्रपान करने वालों और नहीं करने वालों दोनों श्रेणियों में पाया जाता है। स्मॉल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी) सभी प्रकार के लंग कैंसर में 20 फीसदी होता है और यह मुख्य रूप से धूम्रपान करने वालों में पाया जाता है।

अपेक्स वेलनेस ऋषिकेश अस्तपताल, नासिक में कैंसर विशेषज्ञ डॉ. शैलेश बोंडारा ने कहा, फेफड़े के कैंसर का उपचार अब पर्सनलाइज्ड तरीके से मुमकिन है जबकि पहले सभी मामलों में एक ही उपचार प्रक्रिया को अपनाया जाता था। अब हम लंग कैंसर का उपचार मरीज की हिस्टॉलॉजी तथा जेनेटिक मैपिंग से करते हैं और इलाज के लिए कीमोथेरेपी से लेकर टैबलेट तक का नियमित इस्तेमाल किया जाता है। लंग कैंसर तब तक पकड़ में नहीं आता जब तक कि वह उन्नत अवस्था में नहीं पहुंच जाता।

उन्होंने कहा, फेफड़ों से संबंधित अन्य समस्याओं में लगातार खांसी, छाती में दर्द और सांस उखड़ना जैसे लक्षण आम हैं। लंग कैंसर का निदान अक्सर देरी से होता है, लेकिन छाती का एक्स-रे और स्पुटम साइटोलॉजी जैसी कम महंगी जांच प्रक्रियाओं की मदद से इसका आसान उपचार मुमकिन है।

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