मोदी पाकिस्तान के सेना प्रमुख को क्यों नहीं बुलाते : पूर्व रॉ प्रमुख (आईएएनएस विशेष)
नई दिल्ली, 27 मई (आईएएनएस)| ऐसे समय में, जब भारत-पाकिस्तान सीमा पर लगातार जारी गोलीबारी के साथ दोनों ओर की जानें जा रही हैं, भारतीय खुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख ए.एस. दौलत ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा को तनाव कम करने और शांति पर बात करने के लिए वार्ता के लिए आमंत्रित करने का प्रस्ताव रखा है।
दौलत ने जनरल बाजवा की अप्रैल में की गई टिप्पणी को सही ठहराया कि कश्मीर मुद्दे समेत भारत और पाकिस्तान के बीच के सभी मुद्दों को केवल शांति वार्ता के जरिए ही सुलझाया जा सकता है।
दौलत ने दक्षिणी दिल्ली में स्थित अपने आवास पर आईएएनएस से एक साक्षात्कार में कहा, हमें सेना प्रमुख जनरल बाजवा को आमंत्रित करना चाहिए। वह शांति की बात करते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ बातचीत को लेकर हम इसलिए हताश हैं, क्योंकि हम सशस्त्र सेनाओं, यानी आईएसआई या सेना या जिन्हें हम ‘डीप स्टेट’ कहते हैं, उन्हें लेकर हताश हैं। इसलिए, हम सीधे सेना प्रमुख से ही बात क्यों नहीं करते? वह इस समय बेहद जायज बात कह रहे हैं। हम सेना प्रमुख को बातचीत के लिए आमंत्रित क्यों नहीं करते?
भारत का कहना है कि वह पाकिस्तान के केवल निर्वाचित नेताओं से ही बातचीत करेगा। अपने इस रुख के तहत भारत ने पाकिस्तानी सेना से बातचीत पूरी तरह बंद कर दी है। हालांकि विदेश नीति, खासतौर पर भारत के संबंध में विदेश नीति और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की सुरक्षा से जुड़े मामलों के निर्णय लेने में पाकिस्तानी सेना की अहम भूमिका है।
दौलत 1999 से 2000 के बीच देश की बाह्य खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख रहे हैं। दौलत साथ ही 2001 से 2004 के बीच कश्मीर मुद्दों पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी सहयोगी रहे हैं।
उन्होंने एक समय अपने प्रतिद्वंद्वी रहे पाकिस्तान के पूर्व खुफिया प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल असद दुर्रानी (रिटायर्ड) के साथ मिलकर एक खास किताब ‘द स्पाय क्रॉनिकल्स – रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूजन ऑफ पीस’ लिखी है।
उनकी इस किताब में कश्मीर, शांति का मौका चूकने, हाफिज सईद और 26/11, कुलभूषण जाधव, सर्जिकल स्ट्राइक्स, ओसामा बिन लादेन के लिए समझौता, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में अमेरिका और रूस की भूमिका और आतंकवाद दोनों देशों के बीच वार्ता के प्रयास को किस तरह कमजोर करता है जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।
दौलत इससे पहले एक अन्य किताब ‘कश्मीर : द वाजपेयी ईयर्स’ भी लिख चुके हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से बात न करना (समस्या के समाधान में) एक अड़चन है और वह भी ऐसे समय में जब भू-राजनीतिक परिदृश्य नई करवट ले रहा है।
उन्होंने कहा, हमारे आसपास की दुनिया में काफी कुछ हो रहा है और वे सब इस खास क्षेत्र में रुचि ले रहे हैं। अमेरिका का पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ बड़ा हित जुड़ा है।
उन्होंने कहा, ठीक इसी तरह, चीन, रूस और ईरान ने भी इस क्षेत्र में रुचि दिखाई है और हमें इस बात पर गौर करना चाहिए। मुझे लगता है कि इस मामले में पाकिस्तान के साथ बात न करने से समस्या का हल नहीं निकलेगा।
लेकिन क्या पाकिस्तानी सेना के प्रमुख को आमंत्रण देना, खासतौर पर ऐसे समय में जब सीमा पर जारी संघर्ष विराम उल्लंघनों में बड़ी संख्या में लोगों की जानें जा रही हैं और जम्मू के सीमावर्ती इलाकों मे बसे 40,000 से भी अधिक निवासियों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ रहा है?
इस सवाल के जवाब में दौलत ने भी सवाल उठाते हुए कहा, क्या यह और भी बड़ा कारण नहीं है कि हमें बात करनी चाहिए? आप मानकर चल रहे हैं कि ये सभी संघर्ष विराम उल्लंघन केवल पाकिस्तान की ओर से ही हो रहे हैं और केवल हमारे लोग ही इसमें खामियाजा भुगत रहे हैं।
उन्होंने कहा, कहानी का उनकी तरफ का पहलू भी है, कहानी एकतरफा नहीं हो सकती। अगर एक ओर से गोलीबारी होती है, तो सेना या बीएसएफ उसका जवाब देने के लिए बाध्य होती है।
कश्मीर में 1988 से 1990 के बीच खुफिया ब्यूरो के संयुक्त निदेशक रह चुके दौलत ने कहा कि सात दशकों से चल आ रहे संघर्ष का सैन्य समाधान नहीं हो सकता, जिसमें दसियों हजार लोग मारे जा चुके हैं, दो युद्ध (1948 और 1965) लड़े जा चुके हैं और परमाणु हथियार सम्पन्न दोनों देशों के बीच लंबे समय से (1999 से) सैन्य संघर्ष चल रहा है।
उन्होंने कहा, सेना काफी कुछ कर सकती है, उसके बाद ही राजनेता अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
पूर्व खुफिया प्रमुख ने साथ ही कहा कि द्विपक्षीय रिश्तों में इस बात की कोई गुंजाइश नहीं होती कि दोनों में से कौन बड़ा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के खिलाफ अपने कड़े रुख पर भी फिर से विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा, मोदी के साथ समस्या यह है कि चूंकि भारत एक बड़ा देश है (इसमें कोई संदेह नहीं), हम चाहते हैं कि चीजें हमारी शर्तो के अनुसार हों, लेकिन द्विपक्षीय रिश्ते इस तरह नहीं निभाए जा सकते। हमें यह नहीं पूछना चाहिए कि ‘इसमें मेरे लिए क्या है?’
उन्होंने कहा, एक बार आप कश्मीरियों से बात करना शुरू करेंगे तो आप देखेंगे कि आपके लिए काफी कुछ है। आपको यह कोशिश करके देखनी चाहिए कि इससे आपको क्या हासिल होता है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में अधिकांश चीजें चुनावों से जुड़ी हुई हैं, साथ ही कहा कि उन्हें ऐसा लग रहा है कि 2019 के मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कश्मीर के मसले पर कुछ बड़ी बात होगी।
उन्होंने कहा, कहीं न कहीं मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछ होगा। यह सिर्फ एक अहसास है, मैं सरकार में नहीं हूं। लेकिन मुझे ऐसा महसूस हो रहा है।