IANS

भारत-नेपाल के संबंधों में नई सुबह का आगाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति में धर्म और संस्कृति एक कूटनीतिक हिस्सा रहा है। जब भी वह विदेश यात्रा पर होते हैं, तो संबंधित मुल्कों के धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर जरूर जाते हैं और चाय पर विदेशी नेताओं से आपसी संबधों पर बात करते हैं। इससे अपनी कूटनीति में सफलता हासिल करते हैं।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ गुजरात के अक्षरधाम यानी स्वामीनारायण मंदिर का भ्रमण, जापानी पीएम के साथ काशी के धार्मिक स्थलों और गंगा दर्शन। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ ताजमहल जाना और साथ में फोटो सूट कराना। फ्रांस के पीएम के साथ गंगा में नाव में बैठकर अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के घाटों की कूटनीति अहम रही है। शुक्रवार को पड़ोसी मुल्क नेपाल के जनकपुर से शुरू हुई उनकी यह यात्रा इसी कूटनीति का एक हिस्सा है।

भारत आने वाले राजनेताओं के साथ भी वह इसी नीति का खुले तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से वह सीधे लोगों से जुड़ जाते हैं और भीड़ से मोदी-मोदी के गगनभेदी नारे गूंजते हैं। यही वजह है कि वह इजरायल जैसे देशों में भी पहुंचकर भारत की कूटनीति का नया इतिहास लिखते हैं, जहां की आम तौर पर भारतीय राजनेता आज तक जाने से घबराते रहे हैं।

विदेश नीति को उन्होंने बिल्कुल खुला रखा है। वह जहां अमेरिका से अच्छे संबंध चाहते हैं, तो पीएम बनने के बाद पाकिस्तान से भी संबंध सुधारना चाहते हैं। वह चीन से दोस्ताना चाहते हैं तो नेपाल से दोस्ती का इतिहास कायम रखना चाहते हैं। अमेरिका, रूस और चीन की तिलस्मी तिकड़ी के बाद भी रुस और भारत के संबंधों में जीम बर्फ को रक्षा सौदे के जरिए हटाने में कामयाब दिखते हैं। वह कश्मीर की तरह अफगानिस्तान को भी आतंक से मुक्त रखना चाहते हैं। मोदी बौद्ध की नीति से विश्वशांति की बात करते हैं।

पीएम मोदी की चार साल में यह तीसरी सबसे बड़ी नेपाल यात्रा है। भारत और पड़ोसी मुल्क के संबंधों में यह अहम पड़ाव है। हाल के सालों में दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी तल्खी आ गई थी। नेपाल में कम्युनिज्म विचारधारा वाली ओली सरकार आने के बाद स्थितियां बदल गई थीं। मद्धेसिया और दूसरों मसलों पर दोनों देशों के बीच काफी मतभेद उभर आए थे, जिसका फायदा चीन उठा रहा था। लेकिन मोदी की कूटनीति की दाद देनी होगी जो नेपाल कल तक भारत की नीति का विरोध कर रहा था, वह आज स्वागत में फूलों की वर्षा कर रहा है।

नेपाल में चीन की तरफ से कई क्षेत्रों में भारी निवेश किया गया है। नेपाल में बढ़ता चीन का निवेश भारत की चिंताएं बढ़ा रहा था। इसकी वजह से नेपाल की यात्रा भारत के लिए बेहद जरूरी थी। इसकी मूल वजह रही कि नेपाल को विश्वास में लेने के लिए मोदी ने नेपाल से पहले चीन की यात्रा की और नेपाल को विश्वास में लेने के बाद वहां की यात्रा पर गए।

अचानक डोकलाम के विवाद के बाद चीन यात्रा की कूटनीति से जहां पाकिस्तान अवाक रह गया, वहीं नेपाल पर भी इसका खासा असर हुआ। प्रधानमंत्री ने नेपाल यात्रा का सही वक्त चुना। इसके लिए उन्होंने रामायण सर्किट के लिए जनकपुर का जो स्थान चुना और भारत-नेपाल संबंधों के लिए खास हैं, क्योंकि दोनों स्थान लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़े हैं।

नेपाल के साथ धार्मिक कूटनीति के जरिए संबंधों को बढ़ाने का फैसला अपने आप में उचित और समय की मांग है, क्योंकि चीन के मामले में यह भ्रांति है कि वह अपने हितों के खिलाफ कभी कोई समझौता नहीं कर सकता है। पड़ोसी मुल्क चाहे वह नेपाल हो या फिर बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, या म्यांमार वह चीन के बजाय भारत को अधिक भरोसेमंद मानते हैं।

मोदी जनकपुर और नेपाल के लोगों यह विश्वास दिलाने में पूरी तरफ कामयाब रहे की भारत और नेपाल के संबंध परिभाषा से नहीं भाषा से हैं। उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत करने के लिए भाषण की शुरुआत और समापन जय सिया राम से किया और नेपाली में भी संबोधन किया। क्योंकि नेपाल एक हिंदुत्वराष्ट रहा है।

अपनी नेपाल यात्रा मोदी ने जनकपुर और अयोध्या से सीधी बस सेवा शुरू कर कूटनीतिक तौर पर पहली जीत हासिल कर लिया। सैद्धांतिक तौर पर यह बात सच है कि हम पड़ोसियों को नाराज कर अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर सकते हैं। क्योंकि चीन और पाकिस्तान हमारे लिए सबसे बड़े दुश्मन है। जिसकी वजह हमें नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों से राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक संबंधों का मजबूत करना बेहद जरुरी है। हम चीन पर आंख बंद कर भरोसा नहीं कर सकते।

पीएम मोदी ने भारत और नेपाल में विकास के लिए जिन विषयों से संबंधित सिद्धांत सुझाया, उसमें परंपरा, पर्यटन, यातायात, जलमार्ग और तकनीक जैसे विषय शामिल हैं। दोनों देशों के बीच समुद्रमार्ग से व्यापार बढ़ाने की बात रखी गई। इसके अलावा सीमा पर आवाजाही को और सरल बनाने की बात कही। इससे दोनों देशों के सीमावर्ती लोगों को काफी लाभ होगा।

रामायण सर्किट दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों में जहां इतिहास रचेगा। वहीं पर्यटन विकास में भारत और नेपाल अहम पड़ाव तय करेगा। भारत रामायण सर्किट पर 223 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च कर रहा है। दुनिया भर में रामायण काल से जिन-जिन देशों का संबंध रहा है, उसे एक परिपथ के जरिए जोड़ा जाएगा।

इसके अलावा जैन और बौद्ध सर्किट पर भी काम किया जा रहा है। नेपाल के सांस्कृतिक और धार्मिक विकास के लिए भारत 100 एकड़ जमीन उपलब्ध कराएगा। इसके अलावा जनकपुर में रामायाण सर्किट के लिए 100 करोड़ रुपये के निवेश का भी ऐलान किया।

मैथिली भाषा, कला और संस्कृति की चर्चा कर वहां की लोककला और साहित्य से जुड़े लोगों और मिथिला पेटिंग की भी उन्होंने चर्चा की। नेपाल की जनता को कूटनीतिक तौर पर भारत के और करीब लाने के लिए उन्होंने कहा कि जिस तरह यहां मैथिली बोली जाती है, वैसे ही भारत के कुछ हिस्सों में नेपाली बोली जाती है।

मोदी ने पर्यटन के साथ फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने की सलाह दी और मैथिली फिल्म निर्माण को बढ़ावा दिए जाने को खूब सराहा। उन्होंने भाषाई कूटनीति का भी इस्तेमाल किया।

भारत-नेपाल दो देश होने के बाद भी धर्म और संस्कृति में समानता रखते हैं। यही वजह है कि हर रोज एक-दूसरे मुल्कों में हजारों की संख्या में लोग आते-जाते हैं। बिहार राज्य से नेपाल का रोटी-बेटी का जुड़ाव है। जनकपुर के बिना अयोध्या अधूरी है। इसलिए मोदी ने कहा कि हमारे राम का सम्मान जनकपुर से है, यह बात रखकर उन्होंने नेपालवासियों का विश्वास भारत के प्रति और बढ़ा दिया।

निश्चित तौर पर मोदी की यह यात्रा दोनों देशों की चुनौतियों को समझने में कामयाब होगी और पड़ोसी मुल्कों के बीच संबंधों की नई जमीन तैयार होगी। (आईएनएस/आईपीएन)

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