चीनी उद्योग ने किया सरकार के फैसले का स्वागत
नई दिल्ली, 2 मई (आईएएनएस)| घरेलू चीनी उद्योग ने केंद्र सरकार की ओर से गन्ना उत्पादकों को 55 रुपये प्रति टन की दर से अनुदान देने के फैसले का स्वागत किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में बुधवार को गन्ना पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना उत्पादकों को 55 रुपये प्रति टन की दर से अनुदान देने का फैसला लिया गया। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, हालांकि चीनी उद्योग का संकट ज्यादा गंभीर है क्योंकि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में इतनी गिरावट आ चुकी है कि मिलों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है मगर सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है और इससे मिलों और किसानों को राहत मिलेगी। उन्होंने इसे चीनी उद्योग को संकट से निकालने की दिशा में सकार की ओर उठाया गया पहला कदम बताया। उन्होंने कहा कि उद्योग संगठन के मुताबिक, मौजूदा पेराई सीजन में एफआरपी में 11 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है ।
केंद्र सरकार ने पिछले ही साल पेराई सत्र 2017-18 के लिए गो की एफआरपी 230 रुपये से बढ़ाकर 255 रुपये प्रति क्विं टल तय कर दिया। एफआरपी पर कुछ राज्यों सरकार ने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) तय किया है।
चीनी उद्योगों ने सरकार की ओर से गन्ना उत्पादकों को 55 रुपये प्रति टन की दर से अनुदान देने के फैसले सराहना की। यह अनुदान किसानों को पूर्व की भांति गो के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा। एफआरपी केंद्र की ओर से तय गो का मूल्य है जिस पर चीनी मिलें किसानों से गो की खरीद करती हैं।
निजी चीनी उद्योगों का संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि सरकार को गो पर 55 रुपये प्रति क्विं टल की दर से अनुदान देने में चालू पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में कुल 1,550-1,600 करोड़ रुपये का भार वहन करना होगा।
सहकारी मिलों का संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि इससे किसानों को भारी राहत मिलेगी कि उन्हें गो की कीमतों का बकाया मिल पाएगा। साथ ही, मिलों को भी राहत मिलेगी क्योंकि यह एफआरपी का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि मिलों को आठ रुपये प्रति किलोग्राम की राहत मिल पाएगी और चीनी निर्यात के भी अवसर खुलेंगे। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें भारत की तुलना में करीबन 1,000 रुपये प्रति क्विं टल कम होने के कारण भारत चीनी का निर्यात नहीं कर पा रहा है।