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कमलनाथ : ‘कमल’ के खिलाफ बन पाएंगे कांग्रेस का ‘नाथ’?

भोपाल, 29 अप्रैल (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश की सियासत में कांग्रेस और गुटबाजी का चोली-दामन का साथ रहा है। प्रदेश अध्यक्ष चाहे कोई रहा हो, कार्यकर्ता अपने-अपने क्षत्रपों के झंडे के नीचे नजर आए हैं।

ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ अपनी संगठन क्षमता दिखाने में कामयाब हो पाते हैं या फिर वही पुरानी परंपरा चलती रहेगी, यह अभी यक्षप्रश्न है।

राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए मुश्किल से छह माह का समय रह गया है, कांग्रेस हाईकमान ने बड़ी उम्मीद और भरोसे से पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, तो चुनाव प्रचार अभियान समिति का प्रमुख युवा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया गया है। इन दोनों नेताओं में कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की क्षमताओं को कोई नहीं नकारता, मगर अन्य नेताओं का उन्हें कितना साथ मिलेगा, इसमें संशय है।

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर का कहना है कि कमलनाथ के सामने भी वही चुनौतियां रहेंगी जो पूर्व अध्यक्षों के सामने रही हैं, लिहाजा पार्टी हाईकमान अगर कांग्रेस को बेहतर तरीके से चलाना चाहता है तो उसे दिल्ली में ऐसे नेता को बैठाना होगा, जो मध्यप्रदेश की राजनीति को समझता हो और इन नेताओं पर लगाम लगा सके, नहीं तो वही होगा, जो पिछले चुनावों में हुआ है। गुटबाजी के चलते टिकट ऐसे नेताओं को दे दिए जाएंगे, जिनकी जमानत तक नहीं बचेगी।

पार्टी सूत्रों से जो खबरें आ रही हैं, वे इस बात का साफ संकेत दे रही हैं कि कमलनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने से एक बड़ा धड़ा खुश नहीं है। प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सिंधिया की न तो अपनी नियुक्ति पर कोई टिप्पणी आई है और न ही कमलनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने पर। यह साफ बताता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कमलनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने का श्रेय लेने की दिग्विजय खेमे में होड़ मची है, जबकि कमलनाथ तक इस बात पर सवाल उठा चुके हैं।

कमलनाथ मीडिया से चर्चा के दौरान साफ कह चुके हैं कि उनके लिए आगामी विधानसभा चुनाव सबके सहयोग से जीतना पहली प्राथमिकता होगी, वे चाहेंगे कि उम्मीदवार उसे बनाया जाए जो चुनाव जीत सकता है, चाहे वह किसी का भी समर्थक क्यों न हो।

इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कैंप से खबर आई कि वे 20 अप्रैल से ओरछा से राजनीतिक यात्रा शुरू कर सकते हैं, इसके लिए उनकी प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया से चर्चा हो गई है। इस संदर्भ में जब आईएएनएस ने दीपक बावरिया से चर्चा की तो उन्होंने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया। हां, इतना जरूर कहा कि वे इस मसले पर दो दिन बाद ही कुछ कह सकेंगे। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि दिग्विजय सिंह से उनकी कोई चर्चा हुई भी है या नहीं।

कमलनाथ प्रबंधन में सिद्धहस्त हैं, यह पार्टी और कई नेता भी मानते हैं। मगर राज्य की सियासत में उनका यह पहला अनुभव है, जिसमें वे कितने सफल होते हैं, इसका पूर्वानुमान आसान नहीं है। कमलनाथ के खास समर्थक सज्जन वर्मा दावा करते हैं कि कमलनाथ ‘मैनेजमेंट के मास्टर’ हैं, सब कुछ संभाल लेंगे और राज्य में अगली बार कांग्रेस की सरकार बनेगी।

राज्य में कांग्रेस के बीते 15 वर्षो के कालखंड पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात तो साफ हो जाती है कि जब प्रदेश की कमान सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव के हाथ में रही तो उन्हें बड़े नेताओं ने एक हद से बाहर निकलने नहीं दिया। इनकी पहचान एक गुट तक रही।

यादव एक सहज और सरल अध्यक्ष के तौर पर हर कार्यकर्ता से संवाद कर नेताओं से भी संपर्क बनाए रहे, मगर नेताओं ने उन्हें महत्व नहीं दिया। यही कारण रहा कि राज्य में साढ़े चार साल में अरुण संगठन का ढांचा तक खड़ा नहीं कर पाए।

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान पूरी तरह राज्य में युवाओं को आगे करने का मन बना चुकी है, कमलनाथ को भले ही पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपी गई हो, मगर अब वह किसी उम्रदराज नेता को आगे करने के पक्ष में नहीं है, इसीलिए वह कई बुजुर्ग नेताओं से संवाद तक नहीं कर रहा है। इससे अनुभवी नेताओं में असंतोष बढ़ने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। ये बड़े-बुजुर्ग युवाओं को अपना आशीर्वाद देंगे या पार्टी व हाईकमान के खिलाफ लामबंदी करेंगे, यह अभी कोई नहीं जानता।

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