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पिरूल नीति की मदद से उत्तराखंड में 60,000 लोगों को मिलेगा नया रोजगार

महिला समूहों को बनाया जाएगा आत्मनिर्भर

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिरूल से ऊर्जा उत्पादन नीति पर एक ब्लॉग लिखा है। अपने ब्लॉग में मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस नीति का मुख्य उद्देश्य पिरूल को स्थानीय लोगों विशेषरूप से महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का ज़रिया बनाना है।
अपने ब्लॉग में मुख्यमंत्री ने लिखा कि अमूल्य वन संपदा से भरपूर उत्तराखंड के जंगल अब आय का ज़रिया बनने के साथ-साथ बिजली उत्पादन का साधन भी बनेंगे। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखें, तो कुछ समय से चीड़ के जंगल तेज़ी से बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में 4 लाख हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें से 16.36 प्रतिशत में चीड़ के वन हैं। चीड़ की पत्तियां जब तक हरी रहती हैं, तब तक तो इन्हें पशुओं के बिछावन के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, लेकिन बाद में इसका उपयोग नहीं हो पाता।
उत्तराखंड में गर्मियों से पहले चीड़ की पत्तियां गिर जाती हैं, सूखने पर यही पत्तियां पिरूल कहलाती हैं। लेकिन गर्मियों के दिनों में यही पिरूल वनाग्नि का कारण बन जाता है। किसी भी मिश्रित वन में इस पिरूल पर तेज़ी से आग फैलती है, जो पूरे जंगल को चपेट मे ले लेती है, इससे वन संपदा के साथ जनहानि, पशुहानि भी होती है। ऐसे में सरकार ने पिरूल नीति लागू कर, चीड़ के वनों को राजस्व का जरिया बना दिया है।

उत्तराखंड में 4 लाख हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें से 16.36 प्रतिशत में चीड़ के वन हैं।

रोजगार और महिला सशक्तीकरण का ज़रिया बनेगा पिरूल

मुख्यमंत्री ने बताया, ” पिरूल नीति से महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। पिरूल संयंत्र तक जंगलों से पिरूल कलेक्ट करने में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा। वन पंचायत स्तर पर महिला मंगल दलों को इसकी ज़िम्मेदारी दी जाएगी। इस तरह महिलाएं घर बैठे रोजगार प्राप्त कर सकेंगी, और आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगी।”
उत्तराखंड में करीब 6 हज़ार पिरुल संयंत्र स्थापित करने की योजना है, अगर एक संयत्र से 10 लोगों को भी रोजगार मिले ,तो कुल 60 हज़ार लोगों को इस निति के मदद से नया रोजगार मिल सकेगा। इस तरह पलायन पर बहुत हद तक रोक लग सकेगी।
क्या है पिरूल नीति
पिरुल नीति में चीड़ की पत्तियों व्यावसायिक उपयोग में लाकर इनसे विद्युत उत्पादन और बायोफ्यूल उत्पादन किया जाएगा। पिरूल से हर साल 150 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। बिजली उत्पादन के लिए राज्य में विक्रिटिंग और बायो ऑयल संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इन संयंत्रों के स्थापित होने से पिरूल को प्रोसेस किया जाएगा व बिजली उत्पादन किया जा सकेगा। ये संयंत्र स्वयंसेवी संस्थाओं, औद्योगिक संस्थानों, ग्राम पंचायतों, वन पंचायतों, महिला मंगल दलों द्वारा संचालित किए जाएंगे। प्रदेश में ऐसी करीब 6000 ईकाइयां स्थापित करने की योजना है।
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