नायडू ने महाभियोग प्रस्ताव पर आलोचनाओं को नकारा
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)| महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने का निर्णय लेकर आलोचनाओं के घेरे में आए राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने मंगलवार को कहा कि यह निर्णय एक महीने से अधिक अवधि तक उचित विचार-विमर्श के बाद लिया गया है और यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं है।
सूत्रों ने कहा, नायडू के निर्णय पर बधाई देने पहुंचे सर्वोच्च न्यायालय के 10 वकीलों के प्रतिनिधियों से उन्होंने कहा कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों के सख्त अनुपालन और न्यायाधीश पूछताछ अधिनियम, 1968 के आधार पर लिया गया है।
सभापति ने सोमवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ 64 सांसदों के हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को खारिज कर दिया था। उन्होंने प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों को असत्यापित और कार्रवाई नहीं करने योग्य पाया था।
कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने सोमवार को नायडू पर हमला करते हुए उनके निर्णय को ‘अवैध, गलत और असंवैधानिक’ बताया था और कहा था कि ‘यह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है।’
उन्होंने यह भी कहा था कि सांसद उनके आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख करेंगे।
वहीं वकीलों ने कहा कि सभापति द्वारा समय पर लिए गए निर्णय ने प्रधान न्यायाधीश के पद और सर्वोच्च न्यायालय की मर्यादा को बचा लिया।
नायडू ने कहा, मुझे नहीं लगता कि इसके लिए मेरी प्रशंसा की जानी चाहिए। मैंने वही किया जिसकी मुझसे उम्मीद थी और इस तरह के मामलों में सभापति से जिस तरह के निर्णय लेने की उम्मीद की जाती है, मैंने वैसा ही किया। सभा के कुछ आदरणीय सदस्यों के विभिन्न मत हो सकते हैं और उन्हें खुद को अभिव्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन मेरे पास एक उतरदायित्व था। मैंने अपना काम किया और मैं इससे संतुष्ट हूं।
तीन दिन में ही महाभियोग नोटिस पर निर्णय लेने के बाद हो रही आलोचनाओं पर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से उन मीडिया रपटों का हवाला दिया, जिसमें प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के बारे में चर्चा हो रही थी और कहा, मैं तब से प्रस्ताव की गंभीरता और इसकी महत्ता और समय पर निर्णय लेने की आवश्यकता को देखते हुए इस संबंध में इसके प्रावधानों और प्रक्रियाओं और उदाहरणों पर काम कर रहा था।
वकीलों ने कहा, यह पहली बार नहीं है कि इस तरह के नोटिस को पीठासीन अधिकारी द्वारा खारिज किया गया है।
वकीलों ने इसी तरह के एक मामले का उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे.सी शाह के खिलाफ महाभियोग नोटिस को लोकसभा अध्यक्ष जी.एस ढिल्लों ने खारिज कर दिया था। शाह बाद में सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बने। वकीलों ने न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन को हटाने से संबंधित याचिका के भी तीन दिन के अंदर स्वीकार कर लेने का उदाहरण दिया।
सभापति ने कहा कि न्यायाधीशों से पूछताछ अधिनियम के अनुच्छेद 3 में स्पष्ट रूप से राज्यसभा के सभापति द्वारा महाभियोग नोटिस को स्वीकार या खारिज करने के लिए प्रथमदृष्टया जांच की जरूरत को रेखांकित किया गया है। इस संबंध में प्रधान न्यायाधीश पर स्पष्ट जिम्मेदारी होती है और यह सही नहीं होगा की सभापति की भूमिका को केवल डाकघर के अधिकारी के रूप में विवेचित किया जाए।
नायडू ने कहा, प्रधान न्यायाधीश देश के उच्चतम न्यायिक अधिकारी होते हैं और इनसे संबंधित किसी भी मुद्दे को निर्धारित प्रक्रियाओं के तहत सबसे पहले सुलझाया जाना जरूरी है, ताकि माहौल को और खराब होने से रोका जा सके। महाभियोग नोटिस में उठाए गए अधिकतर मुद्दे सर्वोच्च न्यायालय के हैं और उन्हें आंतरिक स्तर पर ही सुलझाया जाना चाहिए था। इसके अलावा कोई और उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का प्रयास है।