दिल्ली में विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन 26 अप्रैल से
नई दिल्ली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)| देश में पहली बार 15वें विश्व ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन नई दिल्ली में 26 से 29 अप्रैल के बीच होगा, जिसका उद्घाटन उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू करेंगे।
इस चार दिवसीय सम्मेलन में 40 से अधिक देशों से हजारों प्रतिनिधि और चिकित्सा जगत के लोग शिरकत करेंगे। वैश्विक गैर लाभकारी पेशेवर संगठन वल्र्ड ऑर्गनाइजेशन ऑफ फैमिली डॉक्टर्स (वोन्का) के ग्रामीण क्षेत्र के अध्यक्ष डॉ. जॉन वायने के अनुसार, यह एक ऐसी पहल है, जिसमें ग्रामीण और प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार के साथ सभी तरह की पृष्ठभूमि वाले प्रशिक्षु और पेशेवर शामिल होंगे। वैश्विक स्तर पर शहरी-ग्रामीण में यह विभेद आज भी सतत रूप से बना हुआ है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है।
उन्होंने कहा, इस वार्षिक सम्मेलन की पृष्ठभूमि वर्ष 2030 में सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति यानी एसडीजी (3) को पाने की आकांक्षा पर आधारित है। इसके तहत स्वास्थ्य का लक्ष्य ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में सभी आयु वर्गो में स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करना और बेहतरी को बढ़ावा देना रखा गया है।
कार्यक्रम के तहत आयोजित कार्यशालाओं में प्राथमिक ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल संबंधी ढांचे में सुधार और नवाचार लाने के लिए रणनीतियां बनाई जाएंगी। इसके तहत चिकित्सा जगत के प्रतिनिधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देने के लिए रोजाना भ्रमण पर ले जाया जाएगा और वैज्ञानिक कार्यक्रमों पर चर्चा कराई जाएगी।
एएफपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमन कुमार ने कहा, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य के ढांचे में सुधार की जरूरत एक चिंता का विषय है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही देश में स्वास्थ्य के स्तर को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार को भी अनुसंधानों में रुचि दिखानी चाहिए।
इस ग्रामीण स्वास्थ्य विचार गोष्ठी में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित चुनौतियों व समाधानों पर चर्चा करने के लिए विचार, परियोजनाएं नवाचार तकनीक और शोध पेश किए जाएंगे, ताकि वैश्विक स्वास्थ्य को और बेहतर बनाया जा सके। कार्यक्रम के दूसरे दिन ग्रामीण स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म और कला उत्सव का आयोजन किया जाएगा।
एएफपीआईए, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. अंकित ओम ने कहा, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों का कोई अकाल नहीं पड़ा है। यह तथ्य है कि हर साल करीब 60 हजार एमबीबीएस डॉक्टर चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करके निकलते हैं, जबकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 1700 भी नहीं हैं। इन संसाधनों के प्रभावी उपयोग और सही तरह से बनाई गई रणनीति के जरिए बचे हुए चिकित्सकों का ग्रामीण उपकेंद्रों में सही तरह से प्रबंधन स्थिति में सुधार ला सकता है।