IANS

महाभियोग प्रस्ताव खारिज, विपक्ष जाएंगा सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली, 23 अप्रैल (आईएएनएस)| राज्यसभा के सभापति एम.वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों के महाभियोग नोटिस को सोमवार को खारिज कर दिया।

नायडू ने ‘कदाचार’ के संबंध में ‘विश्वसनीय और सत्यापित’ सूचना के अभाव के आधार पर नोटिस को खारिज किया। कांग्रेस की अध्यक्षता में सात पार्टियों के 64 सांसदों की ओर से पेश किए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को खारिज करने के फैसले को पूर्व कानून मंत्री और प्रसिद्ध वकील कपिल सिब्बल ने आड़े हाथ लिया और इस फैसले को ‘जल्दबाजी में लिया गया फैसला’ और अवैध व असंवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हालांकि कांग्रेस पर हमला किया और कहा विपक्षी पार्टियों का यह कदम उन सभी संस्थानों को कमजोर और संकुचित करने का कदम है, जिन संस्थानों को खुद की पहचान बनाए रखने की जरूरत है।

सभापति ने यह आदेश सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय की कार्रवाई शुरू होने से पहले दिया, ताकि प्रधान न्यायाधीश अबाधित तरीके से अपना काम करते रहे।

उन्होंने रविवार को कानूनी सलाह लेने के बाद अपने 10 पन्ने के आदेश में कहा, हम किसी भी सोच, शब्द या कार्य से शासन के हमारे स्तंभ को कमजोर नहीं होने दे सकते। महाभियोग नोटिस न तो वांछनीय है और न ही समुचित है।

नायडू ने अपने आदेश में कहा, मैं इस बात से भी वाकिफ हूं कि हमारे पास न्यायाधीश को हटाने के लिए असाधारण, महत्वपूर्ण और पर्याप्त आधार होना चाहिए।

राज्यसभा के 64 सदस्यों ने 20 अप्रैल को प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ ‘कदाचार’ के पांच आरोपों के आधार पर नायडू को महाभियोग प्रस्ताव सौंपा था।

सभापति ने कहा कि नोटिस पर 64 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, जो प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए न्यायाधीशों से पूछताछ अधिनियम के अनुच्छेद(1)(बी) के तहत पर्याप्त है।

नायडू ने कहा, नोटिस स्वीकार करने से पहले, मुझे यह जांच करना पड़ा कि क्या यह याचिका सही है, ‘सत्यापित कदाचार’ का मामला क्या है।

सभापति ने संविधान के अनुच्छेद 124(4) में वर्णित ‘सत्यापित कदाचार’ और ‘अक्षमता’ का उल्लेख किया और कहा कि इसमें उल्लेख किया गया सत्यापित कदाचार अनुच्छेद 124 में बताए गए कदाचार से स्पष्ट रूप से अलग है।

नायडू ने अपने आदेश में कहा, मैंने इस संबंध में पूर्व महान्यायवादी, संविधान विशेषज्ञों और प्रसिद्ध अखबारों के संपादकों से भी राय ली, जिन्होंने एक स्वर में कहा कि महाभियोग का मौजूदा नोटिस न्यायाधीश को हटाने के लिए सही नहीं है।

उन्होंने कहा, मैंने नोटिस के साथ संलग्न आरोपों पर एक-एक कर व संयुक्त रूप से विचार किया और साथ ही देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक आदेश के रूप में उपलब्ध संगत व प्रासंगिक सामग्री पर भी गौर किया। इन सबके बाद, मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि यह प्रस्ताव स्वीकार करने के योग्य नहीं है।

पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने महाभियोग खारिज होने पर मीडिया से कहा, सभापति का फैसला अवैध, गलत और असंवैधानिक है। यह पहली बार है कि प्रारंभिक स्तर पर ही महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

उन्होंने कहा, हम इस आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करेंगे। हम इस बात से आश्वस्त हैं कि जब हम इसे सर्वोच्च न्यायालय में पेश करेंगे, तो इनसे उनका कुछ लेना-देना नहीं रहेगा, ताकि इसपर सुनवाई हो सके और संवैधानिक प्रकृति वाले इस गंभीर मामले में अदालत के निर्णय के बाद पारदर्शिता आएगी।

इस मामले पर अमित शाह ने अपने फेसबुक पेज पर कहा कि इस समय कांग्रेस और उनके दोस्तों का प्रिय शब्द(बजवर्ड) महाभियोग है।

उन्होंने कहा, 125 करोड़ भारतीयों के विश्वास के संस्थान, न्यायपालिका ने कांग्रेस और नेहरू-गांधी वंश को नाराज किया है। मैं इसके कारणों के पीछे नहीं जाऊंगा, लेकिन मैं कहूंगा कि यह संस्थानों को कमजोर और संकुचित करने का वृहत कदम है, जिसे खुद की पहचान बनाए रखने की जरूरत है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को राष्ट्रव्यापी ‘संविधान बचाओ’ अभियान लांच करते हुए मोदी सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय को ‘कुचलने और दबाने’ का आरोप लगाया और कहा कि उनकी पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन को संविधान द्वारा निर्मित संस्थानों को बर्बाद नहीं करने देगी।

राहुल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, लोकसभा, विधानसभा और चुनाव आयोग का गठन संविधान के आधार पर किया गया था, जो कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर और कांग्रेस की देन हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार इन संस्थानों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के लोगों की भर्ती कर रही है।

राहुल ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है कि सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीश न्याय के लिए जनता के पास गए। सर्वोच्च न्यायालय को कुचला जा रहा है, इसे दबाया जा रहा है। संसद को चलने नहीं दिया जा रहा है।

नायडू ने कहा कि चूंकि यह महाभियोग प्रस्ताव प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ था, इसलिए उनसे इस मामले में सलाह नहीं ली जा सकती थी।

नायडू ने इस संबंध में कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों, पूर्व कानून अधिकारियों, कानून आयोग के सदस्यों और प्रसिद्ध न्यायाधीशों से सलाह ली।

वहीं नायडू ने प्रधान न्यायाधीश पर अदालत के मामले के आवंटन को लेकर लगाए गए आरोपों पर कहा, इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से न्यायालय को खुद ही सुलझाना चाहिए था। नोटिस में लगाए गए पांचों आरोपों पर, मेरा विचार है कि यह न तो उचित है और न ही स्वीकार करने योग्य है। मौजूदा मामले में लगाए गए आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को समाप्त करने की गंभीर प्रवृत्ति के हैं, जोकि भारतीय संविधान का मूल आधार है।

उन्होंने कहा, मैंने पांचों आरोपों पर अपना दिमाग लगाया। मैंने सभी दस्तावेजों की जांच की। मेरा यह स्पष्ट तौर पर मानना है कि प्रस्ताव में बताए गए सभी तथ्य से संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत मामला नहीं बनता है, जिससे कोई भी उचित दिमाग (व्यक्ति) यह बता सकता है कि इन आधारों पर प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ कदाचार का मामला नहीं बनता है।

नायडू ने कहा, मेरे सामने पेश ‘विश्वसनीय और सत्यापित’ सूचना के आभाव में बयानों को स्वीकार करना एक ‘अनुचित और गैर जिम्मेदाराना’ कदम होगा।

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