IANS

नरोदा पाटिया जनसंहार : माया बरी, बाबू बजरंगी दोषी करार

अहमदाबाद, 20 अप्रैल (आईएएनएस)| गुजरात उच्च न्यायालय ने वर्ष 2002 के बहुचर्चित नरोदा पाटिया जनसंहार मामले में शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को बरी कर दिया और कहा कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

अदालत ने हालांकि बजरंग दल के कार्यकर्ता बाबू बजरंगी की सजा को बरकरार रखा है। छह वर्ष पहले निचली अदालत ने इस जनसंहार के लिए गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए 28 वर्ष की सजा सुनाई थी। इस घटना में 97 लोगों की मौत हुई थी। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।

न्यायमूर्ति हर्षा देवानी और न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया की खंड पीठ ने माया को बरी करते हुए कहा कि अपराध स्थल पर उनके मौजूद होने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं। भारी भीड़ ने कुछ घंटों तक लोगों का अंधाधुंध कत्लेआम किया था।

वर्ष 2012 में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) की एक अदालत ने कहा था कि ‘उचित संदेह से परे’ माया कोडनानी घटनास्थल पर मौजूद थीं, जहां उन्मादी भीड़ ने मुस्लिमों पर हमला कर अपराध को अंजाम दिया था। माया पेशे से डॉक्टर हैं।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सितंबर, 2017 को अपने बयान में कहा था कि उन्होंने माया को 28 फरवरी, 2002 (घटना के दिन) को विधानसभा में पहली बार साढ़े आठ बजे और एक बार फिर पूर्वाह्न् 11 बजे देखा था।

उन्होंने बयान दिया था कि गुजरात विधानसभा गांधीनगर में है, इसलिए पूर्व मंत्री की दंगे के दिन नरोदा पाटिया में मौजूदगी की बात सही नहीं हो सकती।

एसआईटी अदालत ने हालांकि इस बयान को सबूत मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि गांधीनगर व अहमदाबाद जुड़वा शहर है और साढ़े आठ बजे सुबह राज्य विधानसभा से निकलने के बाद वह आसानी से नरोदा पाटिया पहुंच सकती हैं।

उच्च न्यायालय ने हालांकि उन्हें कई गवाहों के पलट जाने और घटनास्थल पर मौजूद होने के उनके खिलाफ सबूत के आभाव में बरी कर दिया।

न्यायालय ने हालांकि बजरंग दल के एक कार्यकर्ता बाबू बजरंगी के खिलाफ सजा बरकरार रखा। भाजपा की पूर्व मंत्री व अन्य ने एसआईटी अदालत द्वारा उनके खिलाफ सुनाए गए फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया। बजरंगी इस दंगे का मुख्य साजिशकर्ता था।

गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की एक बोगी में आग लगा दी गई थी, जिसमें झुलसकर अयोध्या से लौटे 59 साधुओं की मौत हो गई थी। इसी घटना का बदला लेने के लिए नरोदा पाटिया जनसंहार को अंजाम दिया गया था। वह देश के इतिहास में सांप्रदायिक दंगे की सबसे वीभत्स घटना थी। इस दंगे में शामिल लोगों को आपस में बात करते हुए सुना गया था, देखो, इसको कहते हैं दिमागदार.. ट्रेन की बोगी में आग हम ही ने लगाई थी और उसमें हमारे जितने मरे, बदले के नाम पर हमने उससे कई गुना ज्यादा जान ले ली। यह बातचीत जिस शख्स ने सुनी, वह अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए इस षड्यंत्र का कोई सबूत नहीं है।

उच्च न्यायालय ने अगस्त, 2017 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सरकारी वकील प्रशांत देशाई ने कहा, गुजरात उच्च न्यायालय के निर्णय से स्पष्ट है कि अदालत ने गवाह सिद्धांत पर संज्ञान नहीं लेकर अपनी सजा सुनाई।

उन्होंने कहा, 12 आरोपियों को दोषी ठहराया गया। बाबू बजरंगी, प्रकाश राठौर और सुरेश राणा उर्फ सुरेश लंगड़ा को आईपीसी 120(बी) की धारा के अंतर्गत मुख्य साजिशकर्ता के तौर पर दोषी ठहराया गया। अदालत ने तहलका पत्रिका द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन पर संज्ञान नहीं लिया और 12 दोषियों को 21 वर्ष की सजा सुनाई।

वकील ने कहा, माया कोडनानी के मामले में गवाही देने वालों में विरोधाभास था। किसी भी पुलिस गवाह ने यह नहीं कहा कि उसने घटनास्थल पर माया कोडनानी को देखा था।

मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा, हमारी मंत्री माया कोडनानी को नरोदा पाटिया मामले में गलत तरीके से फंसाया गया था, लेकिन आज उन्हें निर्दोष पाया गया। हम लोग निर्णय से खुश हैं और इसका स्वागत करते हैं। उन्होंने पार्टी के लिए काफी कार्य किया है और अगर वह चाहेंगी तो पार्टी उन्हें नई भूमिका देगी।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close