कठुआ, उन्नाव जैसी घटनाओं पर सख्ती जरूरी : ऋचा चड्ढा
नई दिल्ली, 17 अप्रैल (आईएएनएस)| बेबाक अंदाज व बेजोड़ अदाकारी के लिए मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री ऋचा चड्ढा अपने असल जिंदगी में भी उतनी ही सहज हैं। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ हो या ‘मसान’ ऋचा ने अपनी अधिकांश फिल्मों में समाज से किसी न किसी रूप में जुड़े मुद्दों को पर्दे पर उतारा है। कठुआ और उन्नाव दुष्कर्म जैसे घटनाओं पर ऋचा का कहना है कि इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, क्योंकि कानून लेकर पुलिस-प्रशासन व समाज हर किसी में कमी है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इनसे सख्ती से निपटा जाना जरूरी है।
20 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म ‘दास देव’ के प्रचार के सिलसिले में नई दिल्ली पहुंचीं ऋचा से जब पूछा गया कि दुष्कर्म की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है- कानून, समाज या पुलिस? इस पर ऋचा ने कहा, हर चीज में कमी है। सबसे पहले तो समाज में कमी है। लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है। कठुआ में जो हुआ है..मैं पूछती हूं कि ऐसा शख्स मंदिर का पुजारी कैसे बना..किसने बनाया उसे पुजारी..ऐसा शख्स पुलिसवाला कैसे बना..एक आठ साल की बच्ची से दुष्कर्म होता है..और आप कल्पना कर सकते हैं कि लोग इस मुद्दे पर भी सांप्रदायिकता फैला रहे हैं। क्या हमारी इंसानियत इतनी मर चुकी है?
आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में ऋचा ने चेहरे पर हैरत लाकर कहा, दुष्कर्म के आरोपियों में राजनेता, पुलिसकर्मी और मंदिर में बैठने वाला शामिल हैं, अगर ये मुद्दे प्रकाश में नहीं आए होते, इनपर बवाल नहीं हुआ होता तो ये लोग छूट जाते। अगर इस मामले को सख्ती से डील नहीं किया गया तो यह अपराध बढ़ेगा, क्योंकि दुष्कर्म करने वाला सोचेगा कि मैं कुछ भी करूं..मैं तो बच ही जाऊंगा, और ऐसी स्थिति में कोई रेप पीड़िता आगे नहीं आएगी।
कठुआ दुष्कर्म मामले पर बॉलीवुड की ओर से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई थी। ऋचा सहित कई कलाकारों ने पीड़िताओं के लिए न्याय की मांग की थी। इस बारे में ऋचा कहती हैं, मैंने कठुआ और उन्नाव मुद्दे को ऑनलाइन पेटीशन के जरिए उठाया था। और एक वीडियो भी साझा किया था, जिसमें मैंने उन्नाव और कठुआ मामले पर न्याय की मांग की है। हम शहर में नहीं होते हैं, इसलिए हमारे लिए मार्च करना या धरने पर बैठना मुश्किल है, लेकिन हम जो कर सकते हैं वह कर रहे हैं। हम अपनी आवाज उठा रहे हैं।
सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘दास देव’ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘देवदास’ और शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक ‘हैमलेट’ से प्रेरित है, हालांकि यह काफी अलग फिल्म है। फिल्म में देव का किरदार राहुल भट्ट, पारो का ऋचा और चंद्रमुखी का किरदार अदिति राव हैदरी निभा रही हैं।
ऋचा से जब पूछा गया कि क्या इस किरदार के लिए उन्होंने कोई तैयारी की? इस पर उन्होंने कहा, मैंने पिछली देवदास में निभाए पारो के किरदारों को देखा और फैसला किया जो पिछली फिल्मों की पारो ने किया वह मैं नहीं करूंगी। मैं दीये को हाथ में लेकर देव का इंतजार नहीं करना चाहती थी। हमारे लिए यही सबसे बड़ी तैयारी थी, क्योंकि हम चीजों को दोहरा नहीं सकते।
उन्होंने आगे कहा, मुझे सबसे अच्छी बात लगी कि दासदेव की पारो एक स्वतंत्र व आत्मनिर्भर महिला है। मैं फिल्म में देव का किरदार निभाने के लिए राहुल की भी सराहना करूंगी। मैंने देखा है कि मीडिया कितना पक्षपाती है जो हमेशा सवाल करता है कि मजबूत महिला पात्रों के सामने पुरुष दब जाते हैं। मैं पूछती हूं कि क्या महिलाओं को मजबूत नहीं होना चाहिए? मीडिया क्यों ऐसे सवाल करता है?
आपने अभी तक कई दमदार फिल्में की हैं, लेकिन क्या इस फिल्म में कोई चुनौती महसूस की? यह पूछे जाने पर ऋचा ने कहा, चुनौतियां तो महसूस होती हैं, खासकर जब किसी कहानी पर कई फिल्में बनी हों और उनमें बहुत बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों ने वह किरदार किया हो। यह फिल्म और इसकी कहानी हालांकि पिछली फिल्मों से काफी अलग है।
क्या सिनेमा समाज को बदलता है? इस सवाल पर ऋचा कहती हैं, हम यह बहुत समय से कर रहे हैं। लेकिन मुझे यह बहुत पक्षपाती लगता है कि सिनेमा रिफ्लेक्ट्स सिनेमा, सिनेमा रिफ्लेक्ट्स सोसाइटी बोलकर..हर चीज को हमारे ऊपर डाला जाता है। सबसे बड़ी बात यह कि आपने जिन लोगों को वोट देकर कुर्सी पर बैठाया है, आप उनसे सवाल क्यों नहीं करते। हमने जिम्मा नहीं उठाया है समाज बदलने का..हम तो कहानियां कहते हैं और इसके माध्यम से हम जितना कर सकते हैं उससे ज्यादा करते हैं।